Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra *** www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२७१) कोई विसेसं बुज्झति पसत्यठाणा अहं परिष्मट्ठो अंधत्ते कोई न बुझए मंदधम्मत्ता (२२७७) दव्वे भावे अंघो दव्वे चक्बूर्हि भावे ओसण्णो संविग्गत्तं न रोयति नितियाण पहाणमिच्छंतो (२२७८) जुत्तो जुत्तविहारी तं चैव पसंसए सुलहदोही ओसनविहारं पुण पसंए दीहसंसारी ( २२७९) आहार उयहि सेजा नीयावासेऽवि तिकरणऽ विसोही तह भावंधा केई इमं पहाणंति घोसंति (२२८०) नीयाइविहारम्मिवि जड़ कुणती निग्गहं कसायाणं तस्स हु भवते सिद्धी अवितहसुत्ते मणियमेयं (२२८१) बहुमोहेवि हु पुवि विहरेत्ता संबुडे करे कालं सो सिज्झइ अविय इमे पुरिसज्जाया भवे चउरो (२२८२) नाणेणं संपण्णो नो उ चरितेण एत्य चउभंगो तेणेसेव पहाणी एवं पासंति निद्धम्मा (२२८३) तम्हा उण एयाई कुजा आलंबणाई मइमं तु कुजाहि पसत्यार्ति इमाई आलंबणाई तु (२२८४) तित्यगराणं चरियं चरियं कसिणंगपारगाणं च जो जाणइ सद्दहती ओसत्रं सो न रोएइ ( २२८५) धुवसिज्झियव्वगम्मिवि तित्यगरो जग तयम्मि उज्जमति किं पुण तयउजोगो अयसेसेहिं न कापव्वो (२२८३) चोद्दसपुवी कसिणंगपारगा तेसि जो उ उज्जोगो तं जो जाणइ सो खलु संविग्गविहार सद्दहतो (२२८७) एमादी आलंबण काउं संविग्गतं न रोएति को पुण ओसन्नत्तं रोएत्ती भन्नइ इमो तु (२२८८) सुत्तत्थतदुभए अकडजोगि ओसन्नरोयओ होजा अहवा दुग्गहियत्यो अहवायी मंदधम्मत्ता ( ११८९) अन्नाणियऽ कडजोगी दुग्गहियत्यो उ जेण अववादो गहिओ नवि उस्सग्गो गहिते वा मंदधम्मो उ (२२९०) सो रोए ओसण्णे इति एसो वनिओ चयणकप्पो उववादकम्पमहुणा बोच्छामि जहक्कमेणं तु (२२९१) पंचर्हि ठाणेहिं वियहिऊण संविग्गसडूढयाजुत्तो अब्युजंतं विहारं उवेइ उववायकप्पो सो (२२१२) उधवयणं उवयातो पासत्यादी य पंच ठाणाओ तेसु विविहं तु यद्वितो वियद्विती होइ नायव्यो (२२१३) संवेगसमावण्णो पच्छा उ उवेइ उज्जयविहारं एस उववायकप्पो निसीहकप्पं अओ वोच्छं For Private And Personal Use Only पंचप्पी (२२७९) ॥२२७६ || ।।२२७७॥ ॥२२७८|| ॥२२७९॥ ॥२२८०|| ॥२२८१॥ ॥२२८२॥ ॥२२८३॥ ॥२२८४॥ ।।२२८५।। ।।२२८६।। ॥२२८७।। ||२२८८|| ★ ॥२२८॥ ॥२२९०॥ ||२२९१||★ ।।२२९२।। ॥२२९३॥

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