Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१०८
पंचकप्पो - (१७)
॥१७७४॥
॥१७७५||*
।।१७७६।।
||१७७७॥
||१७७८॥
॥१७७९|1
॥१७८०11
७७८१॥
||१७८२॥
(१७७१) कालक्कप्पाहिगारे पत्यिए होतिमोऽवि तस्सरिसो
__ कालविकप्पऽनोऽवी असिवादीओ मुणेयब्बो (१७७५) असिवे ओमोयरिए रायगुडेपवादिदुढे वा
आगाढे अन्नलिंगे कालक्खेवो व गहणंच (१७७५) असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्खणं गच्छे
सव्वत्थ बावि असिवे कालकेयो विगेगेणं (१७७७) ओमेऽवेवं कुशापयादिहेण बुद्धिणो नातं
तत्यऽविय अन्नलिंगं गिहिलिंगं वावि मासेमा (१७७८) एपंचिय आगाढंअहवा देहस्स जा उ वावती
निब्बिसयाणत्तीण व मत्तस्स निसेहणा चेव (१७७९) एतेसामनतरं अणगादि लिंगि टालंबनो न सेवेचा
__ तट्ठाणतायराहे संवड्ढियमोऽवराहाणं (१७८०) संवदितावराहे तवो व छेदो तहेव मूलंच
आयारपकप्पेज पमाण निम्माण चरिमम्मि (१७८१) एसो उकालकप्पो एतो वोच्छामिदंसणेकप्पं
सहहण लक्खणं तू जिनोयडेसु भावेसु (१७८२) उवरयछक्कायस्सविआयरियपरंपरागते अरये
आगाढकारणेसुसद्दहसुनिसेवणंतत्य (१७८३) छक्काए सद्दहिउंइणभत्र पुणेविसहहेयवं
आगाढमणागाढे आयरियव्वं तुजंतत्य (१७८४) दब्वे खेत्ते काले भावे पुरिसे तिगिच्छिए असहाए
एएहिं कारणेहिं सत्तविहं होइआगाढं (१७८५) एगादीया वुड्ढी एगुत्तरियाय होइदव्याणं
ओमत्यगपरिहाणी दव्यागाढं वियाणाहि (१७८६) जंपंति पुणो विजा सचित्तं दुल्लभ वदव्वं वा
अप्पडिहणंतो अच्छइ उद्दिसिउंजावसो ठाति (१७८७) जाहे उदिठ्ठहाणी ताहे ओमत्यहाणिए भणति
अम्हे करेमोजोग्गं अलंमे एपस्स किं कुणिमो (१७८८) एवं तुहाययंता खेतं कालं व मावमास
ता जूहंती जाव उलंभेजेसिं तुदव्वाणं (१७८५) अह पुण मणेज एवं अयस्समेतेहिं का दव्येहि
एतंदव्यागादं तहिंजए पणगहाणीए (१७९०) खेत्तागाढं इणमो असती खेत्ताण मासजोग्गाणं
असिवं वा अत्रत्या नदीण वा होश रुद्धाउ (१७९१) आपरियादिअगारगअहवाअन्नत्य सावया होज
अंतर जहिं च गम्मइ याला तह तेणखुभियं वा
॥१७८३||
||१७८४
।।१७८५|
॥१७८६॥
॥१७८७१।
॥१७८८॥
।।१७८९॥
।।१७९०|10
॥१७१७॥
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