Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
माहा-२०३
१२३
२०४३॥
२०४॥
Ro0
२०४६॥
२०४७||
२०४८||*
२०४९||
॥२०५०॥
॥२०५७॥
(२०४३) वसिचं पुणोवि. वसती अनुवासिग यसहि सामगी सना
तीयहिगारोएत्यं साहुजा सुद्धऽसुद्धा वा (२०) पट्टीवंसादीहिं वंसगकडणादिएहिं तह चेव
होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तमुणे य (२०४५) कालहृयातिरितं अविसुद्धासुंच तासु बसमाणो
पावति पायच्छित्तंमोत्तूणं कारणमिमहिं (२०१६) असिवे ओमोयरिए रायढे भए व आगाढे
गेलने उत्तिमढे चरित्त सजातिते असती. (२०४७) बाहिं सव्यत्यऽसिवंतस्थ सिवंतेण कालदयगम्मि
पुण्णेविन निग्गळे अनुपच्छाभाव अनुवासी (२०४८) आलंवणे विसुद्धे सुत्तदुयं परिहरेपयत्तेणं
___ आसज्ज उ परिमोग भयणा पडिसेवसंकमणे (२०४९) असिवादीहि वसंते सुद्धाए वसहीऍ वसे साहू
सुद्धासतीए जतती विसोहिकोडीऍ पुव्वंतु (२०५०) मयणत्तियज भणितं पुवऽप्पतराऽथ जे उजे दौसा
ते ते पुव्वं सेवेसंकमणेऽवी इमा भयणा (२०५१) अप्पाबहुंतुलेतुजत्य गुणा तू भविज्ञबहुतरगा
गच्छे गच्छंताणवतं चैव तहिं करेजा उ (२०५२) असिवादिणिट्ठिए पुण अव क्खेवेण संकमे तत्तो
सत्यं तु पडिच्छंतो जइ अच्छे तत्य सुद्धोउ (२०५३) एतन्नतरविहूणं अनुवासियजे उ अनुवेसंकप्प
कालयावराहे संवद्यमोवराहाणं (२०५४) संवट्टियावराहे तयो बछेदो तहेव मूलं वा
___ आयारपकप्पे जपमाण निमाण चरिमम्मि (२०५५) अनुवासियाए कप्पो एमेतो वण्णिओ समासेणं
ठिइकप्पमो उतत्तोबोच्छामि गुरुवएसेणं (२०५६) गच्छाणुकंपयाए सुत्तत्ययिसारएय आयरिए
आगाढे पढमसंजत ओवग्गहिए पकप्पदुए (२०५७) गच्छो जदि हीरेजा आयरियं वादि वायते कोई
एरिसए आगाढे जस्स उजा होइ लद्धीउ (२०५८) सोतंन पमाएई पढमनियंठो पुलागलद्धीओ
गच्छोवग्गहहेउं कारण पकप्पडिअऽणुण्णणा (२०५९) दुपएत्ति साहुसाहुणि तदट्ठहेतुं तु एव मूलगुणे
भणिया सेवा एसा सीसो पुच्छर उ अह इणमो (२०६०) जह कारणम्मि मणिया मूलगुणेसुतु एव पडिसेवा
तह होऊ कारणमी पडिसेदा उतरगुणेवि
॥२०५२।।
॥२०५३॥
॥२०५४॥
२०५५॥
॥२०५६॥
२०५७॥
॥२०५८॥
२०५९
२०६010
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164