Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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गाहा-१०५६
१०७
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॥१७५९॥
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॥१७६१॥
१७६२॥
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॥१७६४॥
(१७५६) तो उ कुलाइंपुछिअते उदाएति पावितो तेसिं
तहवी अलमंतोतजयती पणहाणिजा लगा (१७५७) संविग्गपक्खसहितो ताहे उप्पादएखासुद्धं तु
असती पणहाणीएजइत्तु अप्पे पडिगहणं (१७५८) तह असती तब्मायणमाणीयं गिण्हती तर्हि घेव
नेयोऽविपडिगहगे गेण्हति पासत्यपायाऊ (१७५९) उवहिं पुराणगहितं अप्परिपुत्तं तुगिण्हती तेसि
___ असती तएयरंपिय जदियगिलाणो भये तत्य (१७६०) तत्यविजइन एवं असती सव्वंपि से करेखितरे
अहवा तेवि गिलाणाहवेज ताहे करे सोऽवि (१७६१) एतत्थं अच्छिन्नति गच्छे अण्णोण्णजंतु साहिलं
कीरति न पमाओ खलु तम्हा गेलण्णे कायचो (१७६२) दीहोवमडहतो वा कम्मोदयओ हवेश आतंको
मडहो अदिग्यारोगोतविदरीओ पवे इतरो (१७६३) कालचउक्कं वा खलु काय होइ अप्पमतेणं
उडुबद्धे यासासु अदिय राउ घउक्कमेतं तु. (१७६४) जिणवयणभासियम्मी निजर गेलण्णकारणे विउला
आतंकपउरताए कतपडिकइयाजहनेणं (१७६५) जह भमरमहुयरिगणा निवयंती कुसुमियम्मि वनसंडे
इय होइ निवइयव्वं गेलण्णे कइयजढेणं (१७६६) सयमेव दिपाढी करेंतिपुच्छंतऽजाणगा येअं
विशाण अट्ठगं पुण नायव्यमिणं समासेणं (१७६७) संविग्गमसंविग्गे दिकृत्ये लिंगि सावए सण्णी
अस्सणि सणि इतरे परतित्यिय कुसल तेइच्छं (१९५८) पइदिणमलममाणे वत्युठवियव्यर्ग भवे किंचि
तत्य उ भणेज कोई सुक्कंतुठवे दवे दोसा (१७१९) संसत्तंपिय सुक्खंतू अणिटुंच सुसाहगं
सुसारत्यं तग होइइतरे दोसा बहू इमे (१७७०) निद्धे दवे पणीए अपमञ्जण पाण तक्कणाऽऽयरणा
एए दोसा जम्हा तम्हा उदवं न ठाविना (१७७१) भण्णइ जेणं कझं तं ठावेजातहिं तुजयणाए
आतंकविवासे चउरो लहुगा य गुरुगाय (१७७२) जंसेवियं तु किंची गेलनेतं तु जो उ पउणोऽवि
आसेवते उ साहू रसगिद्धो सेलओचेव (१७७३) तंबोलपत्तनाएण माहुसैसावितूविणासिज्जा
निहंती तंतूमा अण्णोऽवी तहा कुजा
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