Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(१८८२) छादणत्तो नासणओ ऊणेण कता भवे पकप्पस्स माहुपसंगवियड्ढी ऊणऽहितं तेण धारेति (१८८३) गच्छो सकारणोत्ती गिलाणवुड्ढे व बालमसहादी तेसऽट्ठा अतिरेगं धेप्पड़ मा होख दुलमंति (१८८४) सीतादिभावियाणं मा हू नाणादियाण परिहाणी होजाहि तेण गेण्हति संधरती जावतीएणं (१८८५ ) जदि एयविप्पहूणा तवनियमगुणा भवे निरवसेसा आहारमादिया को नाम परिग्गहं कुझा (१८८६) पंचमवओवधातो चोदेती यत्यमादिगहणम्मि एगव्व ओवघाए घातो पंचण्हवि वयाणं (१८८७) एवं तु चोदितम्मी बेति गुरू न उ परिष्गहो सो उ संजमगुणोदकारा उवघाति परिग्गहो होइ (१८८८) जम्मि परिग्गहिम्मी तसथावरघातणा पवत्तंति ग्रहणे गहिए धरणे सो नाम परिग्गहो होइ (१८८९) गहणे पुरकम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी धरणे अप्पडिलेहा कीरति मुच्छा त जा तस्य (१८९०) जम्मि परिग्गहियम्मी तसथावरसंजमा पवत्तंति
ग्रहणे गहिते धरणे सो तू गुणकारओ न परिग्गहो होइ (१८९१) रागादिविरहिओ ऊ आहारादीण जं कुणइ भोगं न हु सो परिग्गहो ऊ तो कि गुरुमादिणं पूपा (१८९२) कीरति आहारादिहिं भन्नति भणिता उ नियमसो साउ तित्यंकरेहिं धेष उ तेण उसा कीरए तेर्सि
(१८९३) तो किं पूयाहेउं पवत्तयंतीह तिस्थगर तित्यं अह कम्मक्खयहेउं पुट्ठो एवं इमं आह (१८९४) आहारउवहिपूजादिकारणा न उ परूहितं तित्यं नाणचरणाण अड्डा तित्यं देर्सिति तित्यकरा (१८९५) तित्य चउहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीणि तित्थगरणामगोत्तस्स खयड्डा अविय साभव्या (१८९९) नापे चरणे गुणकारगाणि आहारउवहिमादीणि एतेण अनुष्णाता तर्हि ठिताणं तु तो पूजा (१८९७) एसो उवहीकप्पो वन्त्रिकप्पो वशियओ वित्यरं पमोत्तूणं संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं
(१८९८) पुव्वभणिओ विभागो संभोगविही य दोहिं ठाणेहिं दोसुवि पसंगदोसा सेसे अतिरेग पशवए
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पंचकप (१८८२)
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