Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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पाहा७२०
11१७२०||
॥७२॥
||१७२२॥
॥१७२३॥
।।१७२४॥
॥१७२५॥
॥१७२६॥
॥१७२७॥
१७२८॥
(१७२०) अंगरगहणा पटमं आयारो तस्स बितियसुयखंधो
तस्सवि बीयज्झयणे उद्देसे तस्स ततियम्मि (१७२१) जत्येयं सुत्तं खतु से य अवस्सं न होज सुलभो उ
आहयावि तईएत्ती अज्झयणम्मी सहसम्मि (१७२२) तस्सवि ततिउद्देसे आदीसुत्तम्मिजंसमक्खायं
जदि संकमो असुद्धोताहे जपणाएँ जुत्तोउ (१७२३) देसूर्णपि हु कोर्डि अच्छंतो सो विसुज्झती नियमा
तम्हा बिसुद्धभावो सुज्झति नियमा जिनमयम्मि (१७२४) बाहिरकरणेजुत्तो उवओगमहिडिओ सुत्तधराणं
जंदोस समायण्णोयि नाम जिनवयणओ सुद्धो (१७२५) दव्वेण य भावेण य सुद्धमसुद्धेय होइ चउमंगो
__ तइओदोसुविसुद्धो चउत्यओ उभयह असुद्धो । (१७२६) वितिओ भावविसुद्धो दबविसुद्धोय पढमओ होइ
अहयायि दोसकरणं दव्ये भावे यदुविहंतु (१७२७) भावविसुद्धाराह को दव्वओसुद्धो व होतऽसुद्धोय
जे जिनदिवा दोसा रागादी तेहिं न उ लिप्पे (१७२८) एतेसामन्नतरंकीयादी अनुवउत्तो जोगिण्हे
तठ्ठाणगावराहे संवड़ियमोऽवराहाणं (१७२९) आवण्णे सद्वाण दिज्जइ अह पुण बहुंतु आवण्णे
तहियं किंवायव्यं भण्णइ इणपो सुणह वोच्छं (१७३०) तहियं किं दायब्वंतवो व छेदोतहेव मूलं वा
कत्येयं भणियंती मण्णति तु निसीहणामम्मि (१७11) बीसइमे उद्देसे मात घउम्मास तह य छमासे
उग्घातमणुग्घायं मणियं सव्यं जहाकमसो (१७३२) एसो उदवियकप्पोजहक्कम वण्णिओ समासेणं
__ एतोयखेत्तकपंवोच्छामि गुरूवएसेणं (१७३३) आदी छक्कनियत्ती उपणिया जम्मिजम्मिखेत्तम्मि
एतेसिं सत्रिकासे सालंबो मुणी वसे खेत्ते (१७३४) छबिहकप्पोआदी तहजारिसगा निसेविया खेता
अक्खेमअसिवमादी न कप्पती तारिसे यासो (१५५) खेमादि अलब्यंतो पडिकुडेहिंपि वसतिजयणाए
दुपगादी संजोगा वक्खाणं सत्रिकासस (१७१६) अक्खेमे असिवप्मिय असि वजे वसिम अक्खेमे
तहियं उवहिविणासो असिवे पुण जीवनासोउ (१७३७) एवं ओमादीसुसंजोगा तिगवउक्कगादीया
यसियच्वंजेसुजहा तमहं योउं समासेणं
।।१७२९॥
।।१७३०॥
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॥१७३३॥
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