Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(१७०२) दमए दुमगे भट्टे समणे छत्रे य तेणए न य नाम न वत्तव्यं दुढे रुट्ठे जहा वयणं (१७०३) एतेर्सि दाराणं विभास भणिया जहा य कप्पम्मि सचैव निरवसेसा नायव्वा सव्वादव्येसु
(१७०४) जं पुण जत्थाहणं दव्ये खित्ते य होज काले य तहियं का पुच्छा ऊ जह उज्रेणीऍ मंडेसु (१००५) एमेव माहमासे किसराए संखडीऍ का पुच्छा विच्छिन्ने व कुलम्मी बहुए दव्चम्मिका पुच्छा ( १७०६) तम्हा उ गहणकाले मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य सोहेजा दव्वस्स उन मूलओ तस्स उप्पत्ती (१७०७) कि पामिछे छिजाए य निष्पत्तिओ य निष्फण्णे कर्ज निष्फत्तिमयं समाणिते होति निष्फनं ( १७०८) कंडितकीतादीया तंदुलमादी तु होस समणड्डा निष्पत्ती सा भवे आयट्टा फासु निष्फण्णं (१७०९) तं होइ कप्पणिज्जं जं पुण समणडु होस निष्फण्णं तं तु न कप्पति एत्थं च चोदए चोदओ इणमो (१७१०) निष्पत्तिओ य निष्कण्णओ य गहणं तु होा समणस्स निप्फत्तिओ असुद्धे कहण्णु निष्फष्णते सोही ( १७११) एवं गवेसियव्वे किं एगट्टाणगं परिचतं
भण्णति अफासुदव्वे न चेद गहणं तु साहूणं (१७१२) तो तेणं साहूणं किं कजं होइती विगप्पे णं
अण्णंपिय एगकुले न हु आगरी सव्यदव्वाणं (१७१३) तिकडुयमादीयाणं सव्यदव्याणं संभवेगकुले ताणि य गवेसमाणे हाणी सश्चैव नाणादी (१७१४) तम्हऽपप्पं परिहर अप्पप्पविवज्जओ विवज्जति हु अष्पष्पं सातो विवज्रति न तं च साहेति (१७१५) निष्पत्ती समणट्ठा समणट्ठा जं च होति निष्फण्णं गहियं होज जयंतेण तत्थ सोही कहं होइ (१७१६) सुयनाणपमाणेण ऊ उवउत्तो उजुयं गवैसंतो सुद्धो जइ बावण्णो खमओ इव सो असदभावो (१७१७) जो पुण मुक्कधुराओ निरुज्जमो जइवि सो उ नावण्णो तहविय आयण्णो चिय आहाकम्मं परिणओव्व
(१७१८) एयस्स साहणद्वं अहवा अन्नंपि भन्नए एत्य कारगसुतं इणमो तमहं वोच्छं समासेणं
(१७१९ ) अंगम्मिवि बितिए ततियगम्मि जे अत्य कुसल जिनदिट्ठा एतेसु जुत्तजोगी विहरंतो अहाउयं वुज्झे
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पंचकणी (१७०२ )
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॥१७०२ ॥
।।१७०३ ।।
।।१७०४ ॥
11900411
॥१७०६ ॥
।।१७०७ ॥
।।१७०८॥
॥१७०९॥
।।१७१०॥
11909911
||१७१२॥
।।१७१३॥
।।१७१४||
।।१७१५।।
॥१७१६ ।।
॥१७१७।।
।।१७१८ ||
।।१७१९ ॥ ★

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