Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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पंचायो ()
॥१६६६॥
॥१६
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||१६६८॥
||१६६९॥
१६७०||*
।।१६७१॥
१६७२॥*
॥१९७३॥
॥१६७४॥
(१५५५) दुकप्पविहारीणं एगंतासायणायबंधोय
__ आसायणायचंघेण चेव दीहो तु संसारो (१९५०) दंसणनाणचरितेतवविणए नियकालमुझुत्तो
निचं पसंसिओपवयणम्मितं जाणसुसुकप्पं (१९६८) सुक्कप्पविहारीणं एगंताराहणा य मोक्खोय
आराहणाईमोक्रेण घेवछिन्नीय संसारो (१९५५) कुत्तो दसविहकप्पो अहुणा दीसतिविहंतु वोच्छामि
तस्स उ दारा इणमोसंगहिया तीहि गाहाहि (१९७०) कप्पेसुनामकप्पोठवणाकप्पोय दवियकप्पो य
खित्ते काले कप्पोदंसणकप्पोयसुयकप्पो (१५७१) अन्झयण चरित्तम्मिय कप्पो उवही तहेव संमोगो
आलोयण उवसंपद तहेव उद्देसऽणुण्णाए (१९७२) अखाणम्मिय कपो अनुवासे तह यहोइ ठित्तकप्पो
अद्वितकप्पोयतहाजिणघेरऽणुवालणाकप्पो (१९७३) जो चेव दवियकपो छबिहकर्पमि होति वक्खाओ
सो चेव निरवसेसो जो य विसेसोऽत्यं तं वोच्छं (११७r) एस पुण तिविहकप्पो अहव इमं भावकप्पमज्झयणं
सव्वं या सुयनाणंदायव्यं केरिसे होइ (१९७५) सुपरचियगुणदोसे सेलधणादीहिं तूपरिच्छाहिं
सुविसोहियमिच्छमले उंडितभोम्मादिणाएहिं (११७५) सव्वंपिय सुयनाणं सुत्तत्यो सड्दिए न उ असदी
अह पुण को परमत्यो विसेसओ पदयणरहस्सं (१९७७) पवयणरहस्समेयाणि वेव मतंति छेदसुत्ताणि
ताणि न दायव्याणि भन्नति सुत्तम्मि को दोसो (१९७८) अप्पंपिय तं बहुगं अरहस्समपारधारए पुरिसे
दुग्गतगमाहणेविवजह वइरगहीरगादीया (१९७१) जह फेल्माहणेणरत्याए वइरहीरत्तो लद्धो
सोअन्नस्स दरिसिओ तेणवि अन्नस्स सोसिट्ठो (१९८०) एवं परंपरेणं रोकनंगओ तसो ताई
ताहे दंडिओ रनाहडोय सो वइरहीरो से (१६८१) एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिद्धं
सो कहयति अग्रेसि परंपरेणंचरणनासो (१५८२) तम्हा परिचिऊणं देयं विहिसुत्तबद्धपेढस्स
परिणामगस्स जइणो न उदेयं अपरिणामस्स (१६८३) दब्वियकप्पो समभिगओन मणिय हेहतंभणामित्ति
सोमवती विसेसो इणमोवोच्छ समासेणं
१६७५||
।।१६७६॥
१६७७॥
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॥१७॥
॥१६८०॥
||१८१॥
||१६८२॥
||१६८३॥
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