Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माह-४१० lirall ||४३१॥ ॥३२॥ ॥४३३॥ 11४३४॥ १॥४३५॥ 11४३६॥ ४३७॥ 11४३८॥ (४३०) एवं ताउकोसे मझे छेदादि ठाति गुरुमासे छग्गुरुगादि जहणे ठायइअंतम्मिलहुमासे (४१) बितियपद मुकमोचिय अहवा वीसजितो नरिदेणं अद्धाण परविदेसे दिक्खासे उत्तिमटुंवा (४३२) रम्रो उवरोहादिसुसंबद्धे तह यदव्वजोगम्मि अल्मुडिओ विणासाय होइ रायावकारी तु (४३३) सञ्चितअचित्तमीसगमवकारे दूतलेह उवकरणं समणाण व समणीण वन कप्पते तारिसे दिक्खा (४३४) आसो हत्यी खरिया याहीतं कतकतंच कणगादी अहवासमंडमत्ता खरियादी अवहिता होआ (४३५) दोन्नविरुद्धं च कतं होजाहि पउत्तकूडलेहोवा पिउपुत्तमाउगादी कोई यहिओच से होजा (४१६) तंतु अनुद्धियदंडं जो पदावेति होति मूलं से एगमगेण पओसा होजा पत्यारदोसावा (४३७) बितियपद मुक्कमोचिय अहवा वीसज्जितो नरिदेणं अद्धाण परविदेसे दिक्खासे उत्तिमद्वेवा (४३4) उम्पादो खलु दुविहोजक्खादेसोय मोहणिसोय दुविहंपि न दिक्खिझा दोसा तु भवे इमे तस्स (४३९) अगणी आलीवणता आयययबिराहणाय उड्डाओ छक्काय न तद्दहती सज्झायज्झाणजोगेय (४४०) पडिलेहणादि वितह करेति समितीसुअसमितया वावि उवदिवपिन गिण्हति तम्हा नवि दिखे उम्मत्तं (४४१) दुविहो असणो खलु जातिउ उवधाततो य नायव्यो उवघातो पुण तिवीहो वाही उवघाउ अंजणता (४४२) एयपंसगेणं धिय अवरो थीणद्धिओं मुणेयब्बो एतेर्सि सोहि इमा जहकूकमेणं मुणेयवा (४४३) उद्धियनयणेतह सेसएसु धीणद्धितोतुकमसो तु छग्गुरु चउगुरु चरिमै दोसा तहिं दिक्खिते इणमो (am) छक्कायविउरमणता आवडणं खाणुकंटमादीसु पंडिलअप्पडिलेहू अंघस्सन कम्पति दिक्खा (१४५) आवहति महादोसदसणकम्मोदएण थीणद्धी एगमणेगपओसेजकाही तंतुंआवजे (४६) गब्बेकीए अणए दुबिक्खे सावराहि रुद्धेय एमादि होति दोसा न कपती तारिसे दिक्ख (४४७) राया वरामयो किति कम्मं संजताण कुव्वंतो दगुण दुवक्खरयं सबे एयारिसामण्णे ॥४३९॥ ॥४४१॥ Im ४३|| umril Im५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ For Private And Personal Use Only

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