Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१४८९॥
11१४९२॥
||१४९३॥
॥१४९५
पंकपो - (१४८८) (४८) संभोगपरूवणया सिरिधर सिव त पाहुडेय संमुत्ते दसणनाणचरितेतवडेउं उत्तरगुणेसु
||१४८८||* (१४८९) ओहअभिग्गहदानग्गहणे अनुपालणाय उववाए
संवासम्मि यछट्टो संभोगविही मुणेयब्बो (१४९०) उवही सुय मत्तपाणे अंजलीपग्गहे इय दावणा य निकाए य अन्मुटाणेत्तियावरे
||१४९०11* (१४१५) किइकम्मस्सय करणे वेयावञ्चकरणे इय समोसरण सण्णिसेझा कहाएयपबंधणा
||१४९१॥ (१४१२) उपगम उप्पाएसण निवेय परिकम्मणायपरिहरणा
संजोगविहिविभत्ता उवहिम्मिवि होति छटाणा (१४९३) चायण पुच्छण पडिपुच्छचिंत परियट्टणा य कहणाय
संजोगविहिविभत्ता सुयठाणे होति छट्ठाणा (१४१४) उग्गमउप्पाएसण लोयण संभुजणा निसिरणा य संजोगविहिविभत्ताय मतदाणे यछटाणा
||१४९४॥ (१४९५) बंदिय पणमिय अंजलि गुरुआलोवे अभिगहि निसेजा
संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मेविछट्ठाणा (१४९६) सेजोवहि आहारे सीसगगाणुप्पयाण सज्झाए ___ संजोगविहिविभत्ता दावणएविछट्ठाणा
॥१४९६|| (१४९७) सेझोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए संजोगविहिविभत्ता निमंतणाएविछटाणा
||१४९७॥ (१४९८) अमुट्ठासण अंजलि किंकर अब्भासकरणमविभत्ती
संजोगविहि विभत्ता अब्मुडाणेवि छट्ठाणा (१४९९) सुत्तायाम सिरो नय मुद्धाणं सुत्तवञ्जियं चेय संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे होति छट्ठाणा
॥१४९९॥ (१५००) आहारउवहिमत्तग अहिगरणविऔसणासुयसहाए
संजोगविहिविभत्ता वेयावोऽवि छवाणा (१९०१) वास उडु अहालंदे पुहुत्तसाहारणोग्गहित्तिरिए ___वुड्ढावासोसरणे छहाणा होति पविभत्ता
॥१५०१॥ (१५०२) परियपृणाऽणुओगे वागरणे परिच्छणाय आलोए
संजोगविहिविभत्ता सन्निसेन्जाए छट्ठाणा (१५०३) यादोजप्प वितंडा पइणियाऽनिच्छिया कहा होति संजोगविहिविभत्ता कहापबंधेऽविछटाणा
॥१५०३॥ (१५०४) रागेणं दोसेणं अत्राणाविरईय मिच्छत्ते
___कोममालोआसवदारेहि तु राइछठेहि (१५०५) अविरयस्स बावत्तरिविहो एसा बावत्तरी दौडिं गुणिया रागदोसेहिं
चोयालं सयं अन्नाणातीहि कोहादीहिं आसवदारेहि
॥१४९८॥
||१५००।
||१५०२॥
||१५०४॥
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