Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचकप्पो - (१५२३) ।।१५२३॥ ॥१५२४॥ ||१५२५॥ ||१५२६|| ॥१५२७॥ ||१५२८॥ 1१५२९॥ १५३०॥ (१५२३) जंचण्ण एवमादी सव्वनयविहाणमागमविसुद्धं कप्पोतिनाणदंसणचरितगुणमाव जाणे (१५२४) निच्छयमतिणौ निच्छयणयट्टिया उद्विता तुपयहारे अहवावि निच्छओ तू नाणादीयं भवे तितयं (१५२५) नासंसइ इहलौयं परलोयं वावि एस उ निरासो निम्ममता तु ममत्तंन करेती अविय देहेऽवि (१५२६) न करेइ अहंकारं एरिसओ अहंति उत्तमगुणोघो निव्वाण परमट्टो तस्साहणता उदढजोगी (१५२७) निष्पडिकम्मसरीरो चत्तसरीरो उ होइ नायव्यो नऽवणेतऽच्छिमलादिविखंतिखमो उझियकसातो। (१५३८) सोइंदियमादीसुय विसयपयारेसु सद्दमादीसु न उवेइ रागदोसे इंदियगामायनिग्गहिया (१५२९) सव्वनयावी दुविहा नाणे करणेय होंति बोद्धदा सवनयाणंऽपेयं मतं तुजंन सुष्ठितो चरणे (१५३०) कप्पो नामं पण्णति जो आवहत्ती उ नाणमादीणि बुड्ढि वाविकरेती सव्वो सो होइ कप्पो उ (१५३१) कप्पो उ एस मणिओ अहुणा एत्तो पकप्प वौच्छामि उस्सारकप्पमादी जहक्कम आणुपुब्बीए (१५३२) उस्सारकप्पलोगाणुओग पढमाणुओग संगहणी संमोग सिगणाइय एवमादी पकप्पो उ (१५३३) आयारदिहिवादत्यजाणए पुरिसकारणविहन्नू संविग्गमपरितंते अरिहति उस्सारणं काउं (१५३४) कारणे-अभिपते पडिबद्धे संविग्गे यसलद्धिए अवट्ठिएय पडिबुझी गुरुअमुई जोगकारए (१५३५) गच्छोय अलद्धीओ ओमाणं चेव अणहियासोय गिहिणो य मंदधम्मा सुद्धं च गवेसए उवहि (१५३६) एएहि कारणेहिं उस्सारायारिहो उ बोद्धव्यो उस्सारो दिहिवादे धम्मकहागंडियनिमित्तं (१५३७) उस्सारकप्पएसोसपासओ वण्णिओ मए एवं लोगाणुओगमित्तो वोच्छामि अहं समासेणं (१५३८) मेहावी सीसम्मी औहमिए कालगन्जथेराणं सझंतिएण अह सो खिसंतेण इमं भणिओ (१५३१) अतिबहुतं तेऽधीतं नयनातो तारिसो मुहत्तो उ जत्य विरोछोइ सेहो निक्खंतो अहोहुवोहव्व (१५४०) तो एव सउमछं मणिओ अह गंतु सो पतिद्वाणं आजीविसगासम्मी सिक्खति ताहे निमित्तत्थं 11१५३१॥ ||१५३२।।* 1१५३३॥ १५३४॥ ||१५३५॥ ॥१५३६॥ ||१५३७॥ ॥१५३८ ||१५३९॥ ||१५४०॥ For Private And Personal Use Only

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