Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाहा १००४ ११००४॥ 1900५|| १००६॥ ॥१००७॥ ॥१००८॥ १११००९॥ ॥१०१०॥ ||१०११॥ (१००) ते सो पावति सव्ये एतेहालंबणेहिं अच्छंतो किं एगंतेणेवं न विसेसो मण्णती सुणसु (१००५) निक्कारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मि निदोसो ते चेव अजयणाए पुणोऽवि सोपावती दोसो (१००६) काणि पुण कारणाईजेहिं चिडेज एगढठाणम्मि पण्णतिपुबुद्दिष्ठा जे खेमसिवादिया दारा (१००७) तेसिं चिय पडियक्खा उक्लेमे असिव तह य दुब्मिक्खे बहुपाणुवस्सओ वा अपणुण्णोतु दयमादी (१००८) एतेहिं कारणेहिं एगहाणम्मि अच्छमाणा उ जदि मयण न कुव्वंती तेशियनीयादिया दोसा (१००९) का पुणजयणा तहियं मण्णति तिहि कारणेहि उठितस्स अण्णउवस्सयमिक्खादिया तुजयणा मुणेयव्वा (१०१०) अक्खेममादिएसुविअक्खेत्तेसु तुकारणवसेणं चिटुंताणं तहियंइमा तु जयणा मुणेयव्या (१०११) अखेमेवि सति पुरं संवट वावि आसयंती उ अक्खेमंचऽणत्या तर्हि खेमंतोन निग्गच्छे (१०१२) जदि असिवंतु बहिखर तइया अच्छंति ते तहिं चैव दुभिक्खेऽविनाणिति प अहवासदत्य दुब्मिखं (१०11) दुभिक्खे जयण तहियं अच्छते वाविजयण तह चेव बहुपाणे आउत्ता चंकंमते तुजपणाए (१०४) उवस्सएँ आउत्ता कुडमुहभूतीत वावि लक्खंता अण्णाए वसहीए ठंति पमअंतिय अमिक्खं (101) जाजत्य जयण जुञ्जति अमणुणे उवस्सयम्मितंकुआ कयवरसोहणमादी दुग्गंधे गंघ पकिरती (१०१६) उदगमए थलगामे यले च वसही तर्हि तुगिण्हति अग्गिमऐं मालबद्धे हम्मित्तलगम्मि व वसंति (१०१७) रोगबहुले अपुछा निवेशए धोरकिपणे न तु विहरे सत्येण वावि गच्छे ठायंति वजत्य निरवायं (१०१८) जहियं सावयदोसा तहियं एगाणितो न गछेखा गेह वसहिं च गुत्तंगामस तु माझयारमि (२०१५) विजामंतादीर्हि वाले नीति रातो नविगच्छे रायं च पत्रविती साहुगुणमजाणमाणंतु (१०२०) जत्य जणो नविजाणति साहुगुणे तहिं कहति साहुगुणे परिभोगअकालम्मी रति कुव्यंति सज्झायं 119०१२ 1॥१०१३॥ ॥१०१४॥ ||१०१५॥ 1190१६॥ ||१०१७॥ 11०१८॥ ॥१०१९॥ ॥१०२०॥ For Private And Personal Use Only

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