Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोचता है—-मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ और यहाँ से कहाँ जाऊँगा? तथागत बुद्ध ने तो साधनामार्ग में प्रवेश करते ही यह प्रतिज्ञा ग्रहण की कि जब तक मैं जन्म-मरण के किनारे का पता नहीं लगा लूँगा, तब तक कपिलवस्तु में प्रवेश नहीं करूँगा।
इस तरह आश्चर्य, जिज्ञासा, संशय, कौतूहल ये सभी मानव को दर्शन की ओर उत्प्रेरित करते रहे हैं । सुदूर अतीत काल से लेकर वर्तमान काल तक 'इंटेक्चुअल क्यूरियॉसिटी (Intellectual Curiosity)', बौद्धिक कौतूहल के कारण ही मानव की ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई है।
गणधर गौतम के अन्तर्मानस में बौद्धिक कौतूहल तीव्रतम रूप से दिखलाई देता है। वे आत्मा-परमात्मा, जीव जगत्, कर्म प्रभृति विषयों में ही नहीं, सामान्य से सामान्य विषय व प्रसंग को देखकर भी उसके सम्बन्ध में जानने के लिए ललक उठते हैं। उस विषय के तलछट तक पहुँचने के लिए उनके मन में कौतूहल होता है। वे अनन्त-श्रद्धा, संशय और कौतूहल से प्रेरित होकर स्वस्थान से चल कर जहाँ भगवान् महावीर विराजित होते हैं, वहाँ पहुँचते हैं, विनयपूर्वक जिज्ञासा प्रस्तुत करते हैं—'कहमेयं भंते' हे भगवन् ! यह बात कैसे है ? कभीकभी तो वे विषय को और अधिक स्पष्ट कराने के लिए प्रतिप्रश्न करते हैं—'केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ'ऐसा आप किस हेतु से कहते हैं ? वे हेतु तक जाकर तर्क की दृष्टि से उसका समाधान पाना चाहते हैं । इस प्रकार प्रतिप्रश्न करते हुए तथा कुतूहल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, वे बालक की तरह संकोच-रहित होकर प्रश्न करते हैं। उनकी प्रश्न-शैली तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक है। विज्ञान में कथम्' (How), कस्मात् 'केन'(Why), इन दो सूत्रों को पकड़कर वस्तुस्थिति के अन्तस्तल में प्रवेश किया जाता है और निरीक्षण-परीक्षण कर रहस्यों को उद्घाटित किया जाता है । गणधर गौतम भी प्रायः इन दो वाक्यों के आधार पर अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत करते हैं। पर उनकी जिज्ञासा की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे केवल प्रश्न के लिए प्रश्न नहीं करते वरन समाधान के लिए प्रश्न करते हैं। उनकी जिज्ञासा में सत्य की बुभुक्षा है। उनके संशय में समाधान की गूंज है। उनके कौतुहल में विश्व-वैचित्र्य को समझने की छटपटाहट है। उनकी सच्ची जिज्ञासु वृति को देखकर ही भगवान् महावीर प्रत्येक प्रश्न का समाधान करते हैं और समाधान पाकर गणधर गौतम कृतकृत्य हो जाते हैं तथा विनयपूर्वक नम्र शब्दों में निवेदन करते हैं-सेवं भंते ! सेवं भंते ! तहमेयं भंते ! अर्थात् हे प्रभो! जैसा आपने कहा है—वह पूर्ण सत्य है, मैं उस पर श्रद्धा करता हूँ। महावीर के उत्तर पर श्रद्धा से अभिभूत होकर उन्होंने जो अनुगूंज की है, वस्तुतः यह प्रश्नोत्तर की आदर्श पद्धति है। उत्तरदाता के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का भाव व्यक्त किया गया है, जो बहुत ही आवश्यक है। इसमें प्रश्नकर्ता के समाधान की स्वीकृति भी है और हृदय की अनन्त श्रद्धा भी।
विषय वर्णन की दृष्टि से भगवतीसूत्र में विविध विषयों का संकलन है। उन सभी विषयों पर प्रस्तावना में लिखना सम्भव ही नहीं है। क्योंकि भगवतीसूत्र अपने आप में स्वयं एक विराट् आगम है। इसमें गणधर गौतम के तथा अन्यान्य साधकों के हजारों प्रश्न और समाधान हैं। तथापि विषय वर्णन की दृष्टि से संक्षेप में निम्न खण्डों में इसकी विषयवस्तु को विभक्त कर सकते हैं
प्रथम साधना खण्ड में हम उन सभी प्रसंगों को ले सकते हैं जो साधना से सम्बन्धित हैं। साधना का प्रारम्भ होता है—सत्संग से। सर्वप्रथम व्यक्ति सन्त के पास पहुँचता है । सन्त के पास पहुँचने से उसको उपदेश सुनने को मिलता है। उपदेश सुनकर उसे सम्यग्ज्ञान समुत्पन्न होता है। सम्यग्ज्ञान समुत्पन्न होने पर वह जड़ और चेतन के स्वरूप को समझकर भेदविज्ञान से यह समझता है कि जड़ तत्त्व पृथक् है और चेतन तत्त्व पृथक् है।
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