Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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सरस्वती को पुत्र प्राप्ति होने का वर्णन कर उसे सारस्वतेय काव्यपुरुष माना है। सरस्वती की तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मा ने उनके लिए पुत्र का सृजन किया।।
आचार्य राजशेखर ने अपना ग्रन्थ काव्यविद्या के शिष्यों के लिए प्रस्तुत किया। अत: काव्य की प्रामाणिकता और उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए, शिष्यों के समक्ष काव्य के भव्य रूप को उपस्थित करना उनका अभीष्ट था। एक रोचक आख्यान की कल्पना द्वारा काव्य का पुराण पुरुष ब्रह्मा एवम् वाग्देवी सरस्वती से सम्बन्ध जोड़कर, उसकी प्राचीनता एवम् महत्ता को सिद्ध करना ही आचार्य का लक्ष्य प्रतीत होता है।
इस काव्य के प्रतीक काव्यपुरुष का प्रमुख वैशिष्ट्य है-छन्दोबद्ध वाणी। इस सरस्वती पुत्र ने महामुनि उशना के हृदय में छन्दोबद्ध वाणी की प्रेरणा की और इस प्रकार वैदिक वाङ्मय में छन्दबद्ध वाणी के दर्शन हुए। छन्दबद्ध वाणी के कारण उशना कवि कहलाए तथा इसी कारण लक्षणा से छन्दबद्ध
रचना करने वाले सभी कवि कहलाए।
बाल्मीकि रचित रामायण लौकिक कवियों का आदि काव्य माना जाता है। किन्तु 'काव्यमीमांसा' में उशना आदि कवि हैं। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि भृगुपुत्र उशनस् (शुक्र) की कवि नाम से प्रसिद्धि थी, इस परम्परा को स्वीकार करते हुए उशना को आदि कवि के रूप में प्रस्तुत करना ही था। काव्योत्पत्ति की कथा बाल्मीकि के 'मा निषाद-------' इस रामायण के श्लोक से प्रारम्भ होती है। इन दोनों प्रसङ्गों का सम्बन्ध जोड़ने के लिए आचार्य राजशेखर ने छन्दोबद्ध वाणी का प्रारम्भ महामुनि उशना से माना है तथा काव्यप्रबन्ध का प्रथम रचयिता बाल्मीकि को माना है। इस अद्भुत काव्यपुरुषाख्यान में सारस्वतेय काव्यपुरुष ने शिशु का रूप धारण किया, सरस्वती द्वारा एकान्त में छोड़ा गया, तब धूप से सन्तप्त उस शिशु को उशना अपने आश्रम में ले गए, इसी काव्यपुरुष की प्रेरणा से
1. 'पुरा पुत्रीयन्ती सरस्वती तुषारगिरौ तपस्यामास। प्रीतेन मनसा तां विरिञ्चः प्रोवाच-पुत्रं ते सृजामि । अथैषा काव्यपुरुषं
काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय)
सुषुवे।'