Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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पूर्णत: परीक्षित काव्य के सायंकाल रात्रि होने तक लेखन कार्य से कवि के काव्यरचना सम्बन्धी कार्यो का समापन स्वीकृत है। 1 काव्य का लेखन उसे सुरक्षित रखने के लिए परम आवश्यक है। सायंकाल की आचार्य राजशेखर ने केवल निर्मित काव्य के लेखन हेतु ही उपादेयता स्वीकार की है क्योंकि दिनभर के परिश्रम के पश्चात् काव्य निर्माण आदि मानसिक कार्यों को करना कठिन हो सकता
है ।
मध्याह्न में स्नान तथा प्रकृति के अनुकूल भोजन कवि के स्वच्छता एवं स्वास्थ्य से सम्बद्ध कार्य हैं। स्वच्छता एवं स्वास्थ्य का कवि के मानस पर विशेष प्रभाव पड़ता है। स्नान से शरीर की स्वच्छता के साथ-साथ मन का भी चैतन्य सर्वमान्य है। प्रकृति के अनुकूल भोजन की आवश्यकता कवि के स्वास्थ्य के लिए स्वीकृत है। मन को स्वस्थ, प्रसन्न, निर्मल तथा एकाग्र रखने के लिए शरीर का स्वास्थ्य परम आवश्यक है।
कवि की दिनचर्या में श्रम से निवृत्ति का भी आचार्य राजशेखर ने महत्व स्वीकार किया है। दिनभर के परिश्रम के पश्चात् श्रम से निवृत्ति न होने का कवि के स्वास्थ्य पर भी अनुचित प्रभाव पड़ सकता है इसी कारण रात्रि के प्रथम प्रहर के कार्य के अन्तर्गत रमण आदि कार्यों को स्थान दिया गया है। शरीर के श्रम की निवृत्ति तथा पूर्ण स्वास्थ्य के लिए प्रगाढ़ निद्रा की भी आवश्यकता है। आचार्य राजशेखर ने इसी कारण रात्रि के द्वितीय, तृतीय प्रहर में पूर्ण विश्राम दायिनी निद्रा को कवि के लिए आवश्यक बतलाया है।
कवि के दैनिक कार्यों से सम्बद्ध विभिन्न शिक्षाएँ यद्यपि आचार्य क्षेमेन्द्र के 'कविकण्ठाभरण' में भी मिलती हैं, उनके अनुसार कवि की चर्या बौद्धिक विकास का बाह्य सहायक साधन है। उन्होंने कवित्व प्राप्ति के अनेक दिव्य उपाय प्रदर्शित किए हैं तथा कवि के लिए प्रभात में जागरण, व्रत, त्याग, गणेश पूजन, श्रेष्ठ कवियों का सत्संग, सज्जन मैत्री, मीठा स्निग्ध भोजन, दिन में न सोना, गर्मी ठण्डक से बचाव, सभा, यज्ञ, विद्यागृहों में ठहरना, अपनी रचित कृतियों का संशोधन तथा बीच-बीच में
1.
सायं सन्ध्यामुपासीत सरस्वतीं च ततो दिवा विहितपरीक्षितस्याभिलेखमाप्रदोषात् ।
(काव्यमीमांसा - दशम अध्याय )