Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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वाले, लाल-लाल जीभ निकाले हुए, ऊपर की ओर मुंह उठाए हुए प्यास से व्याकुल भैंसों का झुण्ड जल को देखते हुए पर्वत की गुफा से निकल पड़ा है (1/21), भीषण वन की अग्नि से सूखे सस्याङ्कुर वाले, प्रचण्ड प्रभञ्जन के वेग से उड़ाए गए सूखे पत्तों वाले, सूर्य के प्रखर ताप से क्षीण जलवाले वन के प्रान्तभाग चारों ओर भीषण भयोत्पादक दिख रहे हैं (1/22), जीर्ण शीर्ण पत्तों से युक्त वृक्षों पर विराजमान विहगवृन्द बेहाल होकर साँस ले रहे हैं, म्लानमुख वानरों के समूह तापशमन के लिए पर्वत
के कञ्जों में जा रहे हैं, गवय मग जाति का झण्ड जल की इच्छा से सब ओर घूम रहा है, शरभों का
समूह सीधे से कूप से जल पी रहा है (1/23), जंगल की आग वायु से उत्तेजित होकर पर्वतों की
कन्दराओं में प्रज्जवलित होती है (1/25), सेमर के जंगलों में अग्नि मानों पुञ्जीभूत हो गई है (1/26)
यह ग्रीष्मऋतु का सुन्दर, विस्तृत वर्णन महाकवि कालिदास के 'ऋतसंहार' के प्रथम सर्ग में मिलता है।
संस्कृत काव्यजगत् में महाकवियों के काव्य ऋतुवर्णन के प्रसङ्गों से भरे पड़े हैं, किन्तु उन सभी
का विवेचन विस्तारभय के कारण सम्भव नहीं है। आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में नवीन
कवियों के लिए विभिन्न ऋतुओं के वर्ण्यविषयों को प्रस्तुत करते हुए कवियों का महान् उपकार किया
था, यद्यपि उन्होंने 'ऋतुसंहार' के श्लोकों को उद्धृत नहीं किया है किन्तु एक ही काव्यग्रन्थ म एक स्थान पर सभी ऋतुओं का सुन्दर, मनोहारी संकलन करता हुआ महाकवि कालिदास का 'ऋतुसंहार'
नामक ग्रन्थ किसी भी ऋतुवर्णन के प्रसंग में विस्मृत नहीं किया जा सकता। कवियों के लिए प्रस्तुत
'काव्यमीमांसा' हो अथवा सहृदयों के लिए प्रस्तुत 'ऋतुसंहार' ऋतुओं के वर्ण्य विषय हम सभी को
प्रकृति के सुन्दर मनोहारी स्वरूप का दर्शन कराते हैं। ऋतुओं के वर्ण्य विषय 'काव्यमीमांसा' के काल
विभाग नामक अष्टादश अध्याय में प्राप्त होते हैं उसमें ऋतओं का क्रम कौटिल्य के अर्थशास्त्र के समान
ही है-वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म।'ऋतुसंहार' में सर्वप्रथम ग्रीष्म ऋतु का वर्णन है
तत्पश्चात् वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर और बसन्त का। अनावश्यक विस्तार की निवृत्ति हेतु
'काव्यमीमांसा' तथा 'ऋतुसंहार' के ऋतु वर्णन सम्बन्धी श्लोक उद्धृत नहीं किए गए हैं।