Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University

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Page 320
________________ [313] करील के वृक्षों वाली ऊँची भूमि पर चढ़कर बैठते हैं। जंगलों में झिल्ली के नाद सुनाई देते हैं । भैंसे, हाथी तथा सुअर के बच्चे कीचड़ से सने दीखते हैं। सर्प और मृग जीभों को लपलपाते हुए देखे जाते हैं और पक्षियों के पक्षमूल शिथिल हो जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु के अन्य वैशिष्टय : ग्रीष्म ऋतु में प्राणी मानों पकाए जाते हैं। धूल तपाई जाती है। पानी मानो उबाला जाता है, पर्वत गरम किए जाते हैं । जल के स्त्रोत और कुएँ सूख जाते हैं। नदियों का जल वेणी जैसा स्वल्प हो जाता है। जल के बहुत नीचे हो जाने से कुएँ में रहट लगाए जाते हैं। जलते मध्याह्न के समय पनशालाओं पर पथिकों की भीड़ लगती है। सतुआ घोलकर पीना रुचिकर लगता है। लोग दोपहर में झोपड़ों में अर्ध निद्रामग्न रहते हैं। ग्रीष्मकाल की सेवनीय वस्तुएँ हैं - शरीर पर कर्पूरधूलिका का घर्षण, आम का पना, भिगोई सुपारी से बना पान, आम के मधुर रस में पगी रसाला, पानी से गीता भात । भिन्न-भिन्न फलों का रस, हरिण एवं लवा के माँस का शोरबा, औटाया हुआ दूध। चन्दन के लेप से गीली मालाएँ, ताजे और गीले मृणाल के हार, चम्पा पुष्पों की मालाएँ। सायंकाल स्नान-क्रीड़ा, महीन कपड़े, चाँदनी से धुली प्रासादों की ऊँची छतें। चन्दन के लेप के समान हृदयहारिणी स्वच्छ चाँदनी का आनन्द, झरोखों या खिड़कियों से आते हुए वायु के झकोरे, पंखों के झलने से बरसते शीतल जलबिन्दु ग्रीष्म के सन्तापहारक हैं। 'नाट्यशास्त्र' में पसीना पोंछना, भूमि के ताप, पंखा झलना, उष्ण वायु के स्पर्श आदि के द्वारा ग्रीष्म ऋतु को अभिनीत करने का निर्देश दिया गया है।। 1. स्वेदप्रमार्जनैश्चैव भूमितापैः सवीजनैः। उष्णस्य वायोः स्पर्शेन ग्रीष्मं त्वभिनयेद् बुधः। 341 (नाट्यशास्त्र - पञ्चविंश अध्याय)

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