Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 331
________________ [324] परवर्ती आचार्यों को नई दिशा दी, किन्तु इस विवेचन को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करने वाले परवर्ती आचार्यों का विषयनिरूपण पूर्णत: 'काव्यमीमांसा' पर ही आधारित रहा। हेमचन्द्र ने तो 'काव्यानुशासन' में आचार्य राजशेखर द्वारा प्रस्तुत देशकालविवेचन का पूर्णतः अनुकरण किया। विनयचन्द्र का देशवर्णन तथा ऋतुवर्णन, देवेश्वर तथा केशवमिश्र के ऋतुवर्णन भी इसी प्रकार के हैं। कवि को काव्यरचना का महान् कार्य सम्पन्न करने का सम्यक निर्देश देने के पश्चात् आचार्य राजशेखर ने काव्य की सरक्षा की आवश्यकता पर सर्वाधिक बल देते हए कविजगत् में भावक तथा काव्यगोष्ठियों के महत्व को ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उन्होंने काव्यगोष्ठियों की कार्यप्रणाली को नवीन विषय के रूप में अपने ग्रन्थ में प्रस्तुत किया। परवर्ती काल में आचार्य भोजराज ने भी विदग्धगोष्ठी में प्रयुक्त प्रश्नोत्तर, प्रहेलिकादि का स्वरूप विवेचन किया। कवि तथा काव्यजगत् की समृद्धि हेतु 'राजचर्या' के अन्तर्गत राजा को भी अपने अमूल्य परामर्शो से लाभान्वित करना आचार्य राजशेखर नहीं भूले। काव्यपाठ काव्य की समाज में प्रस्तुति का सशक्त माध्यम था। अत: काकु की विवेचना के साथ ही विभिन्न स्थानों की पाठप्रणाली के वैशिष्टय से अवगत कराती 'काव्यमीमांसा' कवि के लिए महत्वपूर्ण है। काव्यगुणों पर ही आधारित काव्यपाठ का निर्देश कवि को काव्यमीमांसा से प्राप्त है। काव्यपाठ के गुणदोष तो आज भी प्रासङ्गिक हैं। काव्य को सत्य, कल्याणकारी विषयों का प्रस्तुतकर्ता कहकर आचार्य राजशेखर ने काव्य, काव्यविद्या तथा कवि की उपादेयता की अभिवृद्धि हेतु इन सभी का सत्य, शिव तथा सुन्दर से सम्बन्ध जोड़ा है। काव्य में अतिशयोक्तिपूर्ण असत्य वर्णन भी प्रसङ्गवश उपस्थित होकर कल्याणकारी ही होते हैं क्योंकि वह समाज के सम्मुख वस्तुस्थिति को स्पष्ट करते हैं, उसको व्यावहारिक शिक्षा देते हैं. और अन्ततः उचित मार्गदर्शन कर अनुचित पथगमन से रोकते हैं। वेदों, पुराणों तथा शास्त्रों में भी इस प्रकार के वर्णन अर्थवाद रूप में मिलते हैं, किन्तु यह सभी ग्रन्थ मानवकल्याण को ही परम प्राथमिकता प्रदान करते हैं। इस प्रकार के कल्याणकारी भावों के प्रस्तुतकर्ता सहृदयहृदयानन्ददायक काव्य का परम प्रयोजन

Loading...

Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339