Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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के अनुसार अन्धकार के समान श्याम वर्ण का स्वीकार किया गया। यश, अपयश का काव्य में केवल नाम मात्र से उल्लेख न करके उनका वर्ण निश्चित कर देने से कवि यश,अपयश का विभिन्न श्वेत तथा श्याम विषयों से साम्य करते हुए उनके वर्णनों को नवीनता प्रदान कर सका।
क्रोध तथा अनुराग का रक्तवर्ण :
क्रोध तथा अनुराग का कवि परम्परा के अनुसार रक्त वर्ण है। क्रोध की अवस्था में क्रोधी व्यक्ति के नेत्रों तथा चेहरे की तीव्र लाली ने ही कवियों को क्रोध के स्पष्टीकरण हेतु उसे एक निश्चित वर्ण प्रदान करके काव्य में प्रस्तुत करने का माध्यम कवियों को दिया होगा। क्रोध की अवस्था में क्रोधी के शारीरिक विकार जो रक्तवर्ण से सम्बन्ध रखते हैं, काव्य में क्रोध के निश्चित वर्ण की स्वीकृति के
माध्यम बने होंगे। उसी प्रकार अनुराग की अवस्था में भी रक्तवर्ण से सम्बद्ध विकार नेत्रों की लाली, तथा गालों का लज्जा से लाल हो जाना काव्य में कवि के लिए अनुराग का रक्त वर्ण निश्चित कर देने का माध्यम बने होंगे। यद्यपि क्रोध में जहाँ शारीरिक विकार के रक्त वर्ण का उदण्डता से सम्बन्ध है, वहाँ अनुराग में दिखने वाले शारीरिक रक्तवर्ण का सौम्यता से।
पाप का श्याम तथा हास का शुक्ल वर्ण :
पाप तथा हास भी निश्चित वर्गों में ही काव्य में वर्णित होते हैं। कविपरम्परा में पाप का श्याम
वर्ण है तथा हास का श्वेत वर्ण। अन्धकार के समान मलिन स्वरूप धारी पाप जिससे सम्बद्ध होता है उसे
मलिन ही बना देता है। सम्भवतः इसी कारण पाप का श्याम वर्ण कवियों ने स्वीकार किया हो। हास
प्रकाश जैसी प्रसन्नता का द्योतक है। हंसने पर दातों की धवल पंक्ति का स्पष्टीकरण भी हास को काव्यों में शुक्ल वर्ण प्रदान कर सकता है, किन्तु काव्य में स्मित को भी शुक्ल वर्ण का ही माना गया है जबकि उसमें दांत परिलक्षित नहीं होते। अतः हास के प्रकाश के समान प्रसन्नतादायक तथा शुक्लत्व के समान मनोहारी होने के कारण ही उसे काव्य में शुक्ल वर्ण दिया गया ऐसी सम्भावना की जा सकती है।
काव्य सुन्दर कल्पनाओं का जगत् है। कवि वैज्ञानिक नहीं है। किसी वस्तु अथवा विषय का सत् होना ही उनका वर्ण्य विषय नहीं हो सकता। सत् होने के साथ ही साथ काव्य विषय बनने के लिए सौन्दर्यातिशय से युक्त होना भी आवश्यक है।