Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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निगृहन के पक्षपाती हैं, किन्तु पूर्व कवि की अप्रसिद्धि आदि कारणों से उसके नाम आदि के निगूहन का उनकी दृष्टि में औचित्य नहीं है। चोरी को स्वीकार करते हुए चोरी के निगूहन को भी राजशेखर स्वीकार तो करते हैं, किन्तु यह चोरी को छिपाने का विचार उनका अपना अपूर्व एवं औरों से विलक्षण प्रकार का है। किसी पूर्व रचना से ग्रहण किए गए शब्दों, अर्थों की बाद की रचना में भी उपस्थिति को काव्यपारखी सहृदयों की दृष्टि से छिपा सकना कवि के लिए सम्भव नहीं है। फिर चोरी को छिपाया कैसे जाए? इसका यही उत्तर है कि दूसरों के शब्दों, अर्थों को भी प्रतिभा से संस्कार करते हुए इस प्रकार प्रस्तुत कियाजाए कि सहृदय को कवि की प्रतिभा ही विशेष रूप से परिलक्षित हो। दूसरों के शब्दों, अर्थों की उपस्थिति का भान होने पर भी सहृदय कवि की प्रतिभा से ही विशेष प्रभावित हों, केवल इस बात का ही औचित्य है। जहाँ तक दूसरों की हरण की गई उक्तियों के आच्छादन का प्रश्न है, किसी पूर्व कवि की केवल उन्हीं उक्तियों के हरण का निगूहन सम्भव है जिनका दूसरे अर्थ में परिवर्तन करते हुए अपने काव्य में ग्रहण किया गया हो। हरण किए जाने पर भी जिन उक्तियों में हरणकर्ता कवि ने अपनी प्रतिभा से कोई वैशिष्ट्य निहित किया हो, वे स्वयं ही छिप जाती है। उनकी रचना में कवि का अपना प्रयत्न भी समाहित है इस कारण न तो उनकी केवल हरण रूप में स्वीकृति होती है और न उनके हरण के आचादन की विशेष आवश्यकता। इतने अधिक शब्दों, अर्थों का अपने काव्य में सन्निवेश करने वाले कवि को अपनी रचना के लिए कुछ कहीं और से लेना पड़ सकता है, किन्तु उसको अपने पूर्व रूप से भिन्न रूप में प्रस्तुत करना-अर्थ की दृष्टि से या वचन की दष्टि से यही कवि के लिए श्रेयस्कर है और आचार्य राजशेखर का औरों से विलक्षण निगूहन का विचार भी यही है। राजशेखर की केवल उस चोरी के लिए स्वीकृति है जिसमें शब्द, अर्थ अपने पूर्व रूप की अपेक्षा परिवर्तित रूप में सामने आएँ तथा तीव्रदृष्टि सहयों को भी अपने सर्वथा नवीन, किञ्चित् हृदयहारिता सम्पन्न रूप में ही परिलक्षित हों। कवि का सीधा सम्बन्ध उसी शब्दार्थ से है जिसे उसकी प्रतिभा नवीन रूप में प्रस्फुटित करे किन्तु यदि प्राचीन शब्द, अर्थ के उल्लेख का कार्य कवि करता है तो उसका प्रतिभा द्वारा संस्कार करते हुए नवीन रूप में प्रस्तुतीकरण आवश्यक है। किन्हीं पूर्वकर्ता के शब्दार्थों को उनके पूर्व रूप में ही उनके कर्ता का नाम आदि छिपाते हुए प्रस्तुत करना कवि को चोर की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं, ऐसे ही निगूहन के राजशेखर विरोधी है। संस्कार सहित निगूहन उन्हें मान्य है क्योंकि पूर्ववस्तु का नवीन रूप में प्रस्तुतीकरण कवि की महत्ता के परिचायक हैं।