Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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कारयित्री तथा भावयित्री को प्रस्तुत किया है। कवि की कारयित्री प्रतिभा कवि के हृदय में शब्दों, अर्थों, अलङ्कारों, उक्तियों आदि का प्रतिभास कराती है। 1 कवि की काव्यमयी वाणी का प्रसार ही उसका सारस्वत लोक (सरस्वती के लोक) में स्थान बनाता है तथा आनन्द भी प्रदान करता है इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए ही कवि की अन्तर्चक्षु वस्तुओं के विशिष्ट रूपों का साक्षात्कार करती है, इस कार्य में कवि की प्रतिभा तथा त्रिकालदर्शिनी बुद्धि स्मृति, मति तथा प्रज्ञा नामों से कवि का महान् उपकार करती हैं। तभी कवि प्रकृति तथा मानव जीवन की वस्तुओं को व्यवस्थित, सुन्दरतम, महृदयहृदयाह्लादकारी रुप में प्रस्तुत करता है।
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आचार्य आनन्दवर्धन ने ध्वनि को काव्य की आत्मा स्वीकार करते हुए रस को काव्य में परम स्थान प्रदान किया है। व्यङ्ग्यार्थ की छाया को महाकवियों का भूषण स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा है कि श्रेष्ठ कवियों के मुख्य व्यापारविषय रसादि हैं, अतः उनका रस निबन्धन में प्रमाद रहित होना अनिवार्य है। रसादि विषय से वाच्य तथा वाचक का औचित्यपूर्ण नियोजन महाकवि का मुख्य कर्म है। आचार्य राजशेखर इस दृष्टि से आचार्य आनन्दवर्धन के समर्थक हैं, क्योंकि वह स्वीकार करते हैं कि सरस वर्णन तथा सहृदयहृदयहारी काव्यरचना श्रेष्ठ कवि के वैशिष्ट्य हैं। कवि का मुख्य कर्म है
1.
या शब्दग्राममर्थसार्थमलङ्कारतन्त्रमुक्तिमार्गमन्यदपि तथाविधमधिहृदयम् प्रतिभासयति सा प्रतिभा
2
(काव्यमीमांसा - चतुर्थ अध्याय)
"काव्यमय्यो गिरो यावच्चरन्ति विशदा भुवि तावत्सारस्वतं स्थानं कविरासाद्य मोदते ॥"
(काव्यमीमांसा षष्ठ अध्याय)
3 त्रिधा च सा स्मृतिर्मतिः प्रज्ञेति अतिक्रान्तस्यार्थस्य स्मर्त्री स्मृतिः । वर्तमानस्य मन्त्री मतिः अनागतस्य प्रज्ञात्री प्रज्ञेति । सा त्रिप्रकाराऽपि कवीमामुपकर। (काव्यमीमांसा - चतुर्थ अध्याय)
मुख्या व्यापारविषयाः सुकवीनाम् रसादयः तेषां निबन्धने भाव्यं तैः सदैवाप्रमादिभिः। नीरसस्तु प्रवन्धी य सोऽपशब्दो महान् कवेः
वाच्यानां वाचकानां च यदौचित्येन योजनम् रसादिविषयेणैतत् कर्म मुख्यं महाकवेः । 32 |
मुख्या महाकविगिरामलङ्कृतिभृतामपि प्रतीयमानच्छायैषा भूषा लज्जेव योषिताम् । 38 ।
(ध्वन्यालोक - तृतीय उद्योत )