Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University

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Page 313
________________ [306] 1 से टेड़ी-मेढ़ी रेखाएँ दिखती हैं। अमल, धवल चन्द्रिका स्वच्छ, नीलाकाश अनन्त आकाश में विशद नक्षत्र समूह रात के समय भी दिन के समान चमकती आकाशगङ्गा में नक्षत्रों का दृश्य इधर-उधर घूमते हुए निर्जल और श्वेत बादलों के टुकड़े। रथों के चलने योग्य पङ्कहीन पृथ्वी तीक्ष्णतर किरणों से चमकता हुआ भगवान् भास्कर किसानों के घरों में काटकर लाए गए नवीन शालियों (धान) के की 1 सुगन्ध। ग्रामवधुओं के द्वारा धान की कुटाई। शरद् ऋतु के विभिन्न उत्सवों का उल्लेख : महानवमी के दिन विजययात्री राजाओं द्वारा होने वाला सम्पूर्ण अस्त्रों का पूजन घोड़ों, हाथियों और सैनिकों की मनोहारिणी सजावट के साथ परेड (नीराजना), दीपावली में दीपों की मालाएँ तथा विजययात्रा के लिए उन्मुख राजाओं के विविध विलास । देवताओं के साथ भगवान् माधव का जागरण ।1 ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य राजशेखर के समय में शरद् ऋतु में शारद् नवरात्र ( दुर्गापूजा), विजयादशमी तथा दीपावली के उत्सव और हरिप्रबोधिनी एकादशी पर देवोत्थान के उत्सव प्रचलित थे। भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में शरद् ऋतु में सभी इन्द्रियों के स्वस्थ होने के कारण प्रसन्न वदन तथा विचित्र आलोकयुक्त संसार के प्रदर्शन का निर्देश है 2 'ऋतुसंहार' में वर्णित शरद् ऋतु : फूले हुए काश के पुष्प, विकसित कमल, उन्मादयुक्त हंसों का मधुर कलरव, परिपक्व पीतवर्ण धानों की बालियाँ (3/1), चन्द्रज्योत्सना से रात्रि, हंसों से नदियों के जल, पुष्पभार से झुके सप्तपर्णों से वनप्रान्त तथा मालतीपुष्पों से उपवन सुशोभित होते हैं (3/2), धीरे-धीरे, प्रवाहित नदियाँ, चंचल 1 महानवम्यां निखिलास्त्रपूजा नीराजना वाजिभटद्विपानाम् । दीपालिकायां विविधा विलासा यात्रोन्मुखैरत्र नृपैर्विधेया ॥- बुध्यते च सह माधवः सुरैः ॥ (काव्यमीमांसा अष्टादश अध्याय) 2. सर्वेन्द्रियस्वस्थतया प्रसन्नवदनस्तथा विचित्रभूतलालोकैः शरदन्तु विनिर्दिशेत्। 28 | ---- - (नाट्यशास्त्र पञ्चविंश अध्याय)

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