Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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आदि का वर्णन प्रबन्ध के रसोत्कर्ष में सहायक होता है। ऋतु रात्रि दिन, सूर्य, चन्द्र, उदय, अस्तादि के वर्णन से युक्त काल काव्यों के रसपोषण में सहायक होता है। 1
देश और काल का विभाग करने वाला कवि अर्थदर्शन की दृष्टि से दरिद्र नहीं रहता 12 अतः कविशिक्षा से सम्बद्ध ग्रन्थ 'काव्यमीमांसा' में आचार्य राजशेखर ने नवीन कवि को देश और काल का ज्ञान प्रदान करने के लिए सम्पूर्ण अध्यायों की रचना की है। देश सम्बन्धी अध्याय कवि को तत्कालीन भौगोलिक स्थिति का परिचय देता है। इस विषय का कवि के लिए सर्वप्रथम व्यवस्थित विवेचन 'काव्यमीमांसा' की मौलिकता का परिचायक है। यद्यपि महाकवि कालिदास के 'रघुवंशम् ' महाकाव्य से भी भारतीय भूगोल का काव्यमय सुन्दर परिचय प्राप्त होता है, किन्तु काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में इस प्रकार का भौगोलिक परिचय संस्कृत साहित्य में अपूर्व है । भारतवर्ष का संक्षिप्त भूगोल 'काव्यमीमांसा' में उपलब्ध है, किन्तु विस्तृत भौगोलिक परिचय के लिए आचार्य राजशेखर ने सम्भवत: 'भुवनकोश' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। दुर्भाग्यवश यह ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है। 3
'काव्यमीमांसा' में कवियों के लिए प्रस्तुत कालविवेचन भी आचार्य राजशेखर के सूक्ष्म निरीक्षण तथा मौलिक वर्णना शक्ति का परिचय देता है। उनकी दृष्टि में कवि की सावधानता ही काव्यनिर्माणकाल में उसका भूषण है। काल एवम् ऋतुओं से सम्बद्ध ज्ञान के न होने पर कवि ऐसे अनेक प्रमाद कर सकते हैं, जो उनकी सभी विशेषताओं को नष्ट करके उनके काव्य को दोषमय बना देते हैं।
1. यो देशकाललोकादिप्रतीपः कोऽपि दृश्यते । तमामनन्ति प्रत्यक्षविरोधं शुद्धबुद्धयः । 55
सरस्वतीकण्ठाभरण (भोजराज) प्रथम परिच्छेद
पुरोपवनराष्ट्रादिसमुद्राश्रमवर्णनैः देशसम्पत्प्रबन्धस्य रसोत्कर्षाय कल्पते । 1311 ऋतुरात्रिन्दिवाकैन्दूदयास्तमयवर्णनैः कालः काव्येषु सम्पन्नो रसपुष्टिम् नियच्छति । 132 1
सरस्वतीकण्ठाभरण (भोजराज) पचम परिच्छेद (काव्यमीमांसा सप्तदश अध्याय)
2. देशं कालं च विभजमानः कविर्नार्थदर्शनदिशि दरिद्राति ।
3. इत्थं देशविभागो मुद्रामात्रेण सूत्रितः सुधियाम् यस्तु जिगीषत्यधिकं पश्यतु मदद्भुवनकोशमसौ ।
(काव्यमीमांसा सप्तदश अध्याय)
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