Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में प्रकर्ममास, सौरमास, चान्द्रमास. नक्षत्रमास तथा मलमास का उल्लेख है।।
चान्द्रमास से सम्बद्ध संवत्सर तथा ऋतु चक्र :
कविजनों के लिए चान्द्रमास महत्वपूर्ण हैं, वे इसको ही कालगणना के लिए आधार स्वरूप स्वीकार करते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्षों से एक मास, दो मासों की एक ऋतु, छह ऋतुओं के चक्र से एक चान्द्र संवत्सर बनता है। ज्योतिषशास्त्रवेत्ता इस संवत्सर का प्रारम्भ चैत्र मास से मानते हैं और लौकिक व्यवहार वालों के लिए संवत्सर का प्रारम्भ श्रावण मास से होता है। कवियों के लिए रचित 'काव्यमीमांसा' में दो-दो मासों से निर्मित ऋतुओं तथा उनके वर्णनीय विषयों की विस्तृत विवेचना है। संवत्सर का आरम्भ वर्षा ऋतु से करते हुए - श्रावण, भाद्रपद वर्षा, आश्विन और कार्तिक शरद्, मार्गशीर्ष
और पौष हेमन्त, माघ और फाल्गुन शिशिर, चैत्र और वैशाख वसन्त तथा ज्येष्ट और आपाढ़ ग्रीष्म ऋतु - यह ऋतु चक्र काव्यमीमांसा में प्रस्तुत है। 'अर्थशास्त्र' में भी वर्षा ऋतु से संवत्सर का आरम्भ माना गया है ।2 शीत, उष्ण और वर्षा रूपी स्वभाव वाला काल अपने शीत स्वभाव से युक्त होने पर हेमन्तादिरूप, उष्ण स्वभाव होने पर ग्रीष्मादिरूप तथा वर्षा रूपी स्वभाव वाला होने पर प्रावृड्प होता है यह उल्लेख कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में राजा के लिए प्रस्तुत शक्तिदेशकालबलाबलज्ञान प्रकरण में मिलता है 3 यास्क के निरुक्त में तीन ऋतुओं से युक्त संवत्सर का उल्लेख है। फाल्गुन से चार मासों तक
1. त्रिंशदहोरात्रः प्रकर्ममासः । सार्धसौरः। अर्धन्यनश्चान्द्रमासः। सप्तविंशतिर्नक्षत्रमास: द्वात्रिंश् मलमासः।
___अर्थशास्त्र (कौटिल्य) द्वितीय अध्याय, अध्यक्षप्रचारः, प्रकरण - देशकालमानम् 2 षण्णामृतूनां परिवर्तः संवत्सरः। स च चैत्रादिरिति दैवज्ञाः श्रावणादिरिति लोकयात्राविदः। तत्र नभा नभस्यश्च वर्षाः, इष ऊर्जश्च शरत् सहः सहस्यश्च हेमन्तः, तपस्यपस्यश्च शिशिरः, मधुर्माधवश्च वसन्तः, शुक्रः शुचिश्च ग्रीष्मः।
(काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) श्रावणः प्रोष्ठपदश्च वर्षाः। आश्वयुजः कार्तीकश्च शरत्। मार्गर्शीर्षः पौषश्च हेमन्तः। माघफाल्गुनश्च शिशिरः। चैत्री वैशाखश्च बसन्तः ज्येष्ठामूलीय आषाढश्च ग्रीष्मः।
अर्थशास्त्र (कौटिल्य) द्वितीय अध्याय,
अध्यक्षप्रचारः, प्रकरण - देशकालमानम् 3. काल: शीतोष्णवर्षात्मा------शीतस्वभावो हेमन्तादिरूपः, उष्णस्वभावो ग्रीष्मादिरूपः, वर्षस्वभाव: प्रावृदम्पश्च
भवति। अर्थशास्त्र (कौटिल्य) नवमधिकरणम् - अभियास्यत्कर्म - शक्तिदेशकालबलाबलज्ञानम्