Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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काल विषयों में सिद्ध, काल से पूर्ण परिचित कवि महाकवि होते हैं। काल तथा उसकी विभिन्न ऋतुओं के वर्ण्य विषयों का कवि को 'काव्यमीमांसा' से विस्तृत परिचय प्राप्त होता है। सम्पूर्ण प्रकृति का सम्यक् सूक्ष्म निरीक्षण करने के पश्चात् आचार्य राजशेखर ने उसी प्रकृति की समस्त सामग्रियों को उनके सुन्दरतम, व्यवस्थित रूप में कवियों के समक्ष प्रस्तुत किया, जिससे कि कवि अपने काव्यों में काल सम्बन्धी दोषों से दूर रह सकें।
देश विवेचन
नवीं और दसवीं शताब्दी में भारतवर्ष की भौगोलिक दशा का 'काव्यमीमांसा' से परिचय प्राप्त होता है। आचार्य राजशेखर ने विभिन्न लोकों, महाद्वीपों, सागरों एवम् पर्वतों का भी विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। उनका देशवर्णन उत्तर में तुर्किस्तान से लेकर दक्षिण में लंका तक तथा पूर्व में सिंगापुर और बर्मा से लेकर पश्चिम में ईरान तक विशाल भू-भाग का चित्र प्रस्तुत करता है।
लोक विभाग :
'काव्यमीमांसा' में भूर्, भुवर्, स्वर्, महर्, जनस्, तपस् और सत्य - सात लोक, सात वायुस्कन्ध (अन्तरिक्ष में स्थित प्रवह, निवह आदि वायु के स्थान अर्थात् वायुसमूह), सात पाताल (अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल)- इस प्रकार गणना करके इक्कीस लोक वर्णित हैं। कुछ लोगों के अनुसार द्यावापृथ्वी रूप एक ही लोक है। द्यावापृथ्वी का अर्थ भूमि और अन्तरिक्ष अथवा मर्त्य तथा स्वर्गलोक है। एक अन्य मत द्यावापृथ्वी (स्वर्ग्य और मर्त्य) को दो जगत् मानता है। तृतीय मत स्वर्ग, मर्त्य तथा पाताल इन तीन लोकों को स्वीकार करता हैं। तीनों लोकों के भूर्, भुवर् तथा स्वर् नाम हैं। इन तीनों लोकों सहित महर्, जनस्, तपस् और सत्य – यह चार लोक और
1. अनुसन्धानशून्यस्य भूषणं दूषणायते। सावधानस्य च कवेर्दूषणं भूषणायते॥
इति कालविभागस्य दर्शिता वृत्तिरीदृशी। कवेरिह महान्मोह इह सिद्धो महाकविः ।।
(काव्यमीमांसा
दश अध्याय)