Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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विभिन्न दिशाओं की स्थिति :
पूर्व दिशा :- चित्रा और स्वाति नक्षत्रों के मध्य ।
पश्चिम :- पूर्व दिशा के सम्मुख।
उत्तर :- ध्रुव नक्षत्र से युक्त दिशा।
दक्षिण :- उत्तर के सम्मुख।
विदिशा :- दिशाओं के मध्य चार कोन।
ब्राह्मी :- आकाश।
नागीया :- पाताल।
विभिन्न दिशाओं के लोगों के भिन्न वर्ण :
पूर्व देश :- श्याम वर्ण।
दाक्षिणात्य :- कृष्ण वर्ण।
पाश्चात्य :- पाण्डु वर्ण।
उत्तर देश :- गौर वर्ण।
मध्य देश :- कृष्ण, श्याम एवम् गौर।
कविसमय के अनसार श्याम और कृष्ण का तथा पाण्डु और गौर का अधिक भेद नहीं है।
1. तत्र चित्रा स्वात्यन्तरे प्राची, तदनुसारेण प्रतीची, ध्रुवेणोदीची, तदनुसारेणावाची, अन्तरेषु विदिशः, ऊर्ध्व ब्राह्मी, अधस्तान्नागीयेति।
(काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय) तद्वद्वर्णनियमः। तत्र पौरस्त्यानां श्यामो वर्ण: दक्षिणात्यानां कृष्णः, पाश्चात्यानां पाण्डुः, उदीच्यानां गौरः, मध्यदेश्यानां कृष्णः श्यामो गौरश्च।------ न च कविमार्गे श्यामकृष्णयोः पाण्डुगौरयोर्वा महान्विशेष
(काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय)
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