Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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षष्ठ अध्याय (क) काव्यमीमांसा में वर्णित कवि तथा भावक
काव्यमामांसा में कवि :
कवित्व से सम्बद्ध विषय विवेचना की दृष्टि से आचार्य राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' पूर्णत: मौलिक ग्रन्थ है। कवि के व्यक्तित्व तथा काव्यशैली के विकास के लिए उचित मार्गदर्शक तथा काव्यकौशल की अभिवृद्धि हेतु सम्यक् निर्देशक कवि शिक्षासम्प्रदाय से सम्बद्ध यह ग्रन्थ श्रेष्ठ कवि बनने तक की प्रक्रिया की विशद, व्यापक विवेचना प्रस्तुत करता है। कवियों के आचार तथा दैनिक व्यवहारादि आचार्य राजशेखर के सूक्ष्म निरीक्षण तथा पाण्डित्य के परिचायक के रूप में इस ग्रन्थ में
दृष्टिगत होते हैं। 'काव्यमीमांसा' कवियों के लिए ही रचित भी है।।
काव्यमीमांसा में कवि शब्द की सिद्धि कवृ वर्णे' धातु से हुई है ।2 इस दृष्टि से वर्णनाशक्ति की प्रमुखता स्वीकार करते हुए सभी वर्णयिता कवि हैं। 'कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभू:' रूप में वेदार्थवर्णयिता सर्वज्ञ परमात्मा कवि हैं। वर्णयिता के रुप में शुक्राचार्य उशना की भी 'कवि' संज्ञा है। लौकिक भाषा में रामचरित्र के वर्णयिता बाल्मीकि आदि कवि हैं तथा महाभारत के रचयिता वेदव्यास भी वर्णयिता होने के कारण ही कवि हैं। हलायुधकोष में सर्वज्ञाता सर्ववर्णयिता कवि है। अमरकोष में
कविपद का अर्थ पण्डित है ३
1 यायावरीय: संक्षिप्य मुनीनां मतविस्तरम् व्याकरोत्काव्यमीमांसा कविभ्यो राजशेखरः॥
(काव्य मीमांसा - प्रथम अध्याय) 2. कविशब्दश्च 'कवृ वर्णे' इत्यस्य धातो: काव्यकर्मणो रूपम्।
(काव्यमीमांसा - तृतीय अध्याय) 3 कवते सर्व जानाति,सर्व वर्णयति, सर्व सर्वतो गच्छति वा। कव् इन् यद्वा कुशब्दे 'अच इ: इति इ। (हलायुधकोष) संख्यावान् पण्डित: कवि :
(अमरकोष)