Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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आदर्श प्रस्तुत करना होता है, और कवियों के आदेशानुसार किए गए लोकव्यवहार मानव के लिए
कल्याणकारी होते हैं।
संसार में सुन्दरतम का प्रसार भी कविवाणी से ही होता है। आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में स्वीकार किया है कि प्राचीन राजाओं के प्रभावशाली चरित्र, देवताओं की प्रभुत्वलीला और ऋषियों तथा तपस्वियों के अलौकिक प्रभाव-ये सभी कुछ कवियों की वाणी से ही प्रसूत तथा प्रसिद्ध हुए हैं । इस प्रकार कविवचन संसार का महान् उपकार करते हैं।
__ आचार्य राजशेखर ने भिन्न भिन्न आधार ग्रहण करते हुए 'काव्यमीमांसा' में कवियों के विभिन्न भेदोपभेद प्रस्तुत किए हैं। यह कविवर्गीकरण राजशेखर की मौलिकता तथा सूक्ष्म निरीक्षण को सिद्ध करते हैं। कविभेदों का विस्तृत विवेचन विशिष्ट संदर्भ में भिन्न भिन्न स्थानों पर किया गया है।
काव्यमीमांसा में काव्यपरीक्षक भावक :
कवि की कारयित्री प्रतिभा के साथ-साथ भावक की भावयित्री प्रतिभा की विवेचना करके
आचार्य राजशेखर ने अपनी मौलिकता प्रमाणित की है। कारयित्री प्रतिभा कवि के हृदय में शब्दों, अर्थों,
अलङ्कारों, उक्तियों आदि का प्रतिभास कराती है तथा भावयित्री प्रतिभा भावक के हृदय में 3 कविहृदय के साथ साधारणीकरण के लिए भावक को भी ऐसे ही प्रतिभास की आवश्यकता है।
भावक काव्यनिर्माता नहीं हैं। उसकी स्थिति कवि से भिन्न है तथा उसकी भावयित्री प्रतिभा कवि की कारयित्री प्रतिभा की अपेक्षा कम सक्रिय है। कवि की कारयित्री प्रतिभा काव्यरचना के लिए
1 किञ्च कविवचनायत्ता लोकयात्रा। सा च निःश्रेयसमूलम् इति महर्षयः।
(काव्यमीमांसा-षष्ठ अध्याय) 2 किञ्च- श्रीमन्ति राज्ञां चरितानि यानि प्रभुत्वलीलाश्च सुधाशिनां याः। ये च प्रभावास्तपसामृषीणां ताः सत्कविभ्यः श्रुतयः प्रसूताः॥"
(काव्यमीमांसा-षष्ठ अध्याय) 3 या शब्दग्राममर्थसार्थमलङ्कारतन्त्रमुक्तिमार्गमन्यदपि तथाविधमधिहृदयं प्रतिभासयति सा प्रतिभा।..............
सा च द्विधा कारयित्री भावयित्री च। कवेरुपकुर्वाणा कारयित्री.......... भावकस्योपकुर्वाणा भावयित्री। स हि कवेः श्रममभिप्रायं च भावयति । तया खलु फलितः कवेापारतररन्यथा सोऽवकेशी स्यात्।
(काव्यमीमांसा-चतुर्थ अध्याय)