Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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एवम् राजकवि के पद पर प्रतिष्ठित थे। इसी कारण 'काव्यमीमांसा' में उन्होंने राजदरबारों में विद्वानों के सम्मान का सूक्ष्म विवेचन करते हुए सजीव चित्र उपस्थित किया है। राजाओं को आचार्य राजशेखर ने यह निर्देश दिया कि उन्हें महानगरों में काव्यों और शास्त्रों की परीक्षा के लिए ब्रह्मसभाएँ (विद्वद्गोष्ठी) आयोजित करानी चाहिए और उस परीक्षा में उत्तीर्ण विद्वानों को 'ब्रह्म-रथ' तथा 'पट्टबन्ध' से सम्मानित करना चाहिए। 1 काव्यकार और शास्त्रकार की परीक्षाओं के निमित्त उज्जयिनी तथा पाटलिपुत्र में आयोजित राजसभाओं का 'काव्यमीमांसा' में उल्लेख है उज्जयिनी की काव्यकारपरीक्षा में कालिदास,
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मेण्ठ, अमर, रूप, आर्यसूर, भारवि, हरिचन्द्र और चन्द्रगुप्त की परीक्षा हुई थी । पाटलिपुत्र की शास्त्रकार परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उपवर्ष, वर्ष, पाणिनि, पिङ्गल, व्याडि, वररुचि और पतञ्जलि ने ख्याति अर्जित की थी । 2 काव्यकार तथा शास्त्रकार की परीक्षा हेतु आयोजित गोष्ठियाँ प्रायः संवत्सर के आरम्भ में महानगरों में बुलाई जाती थी। अपने राज्य की साहित्यिक समृद्धि के लिए राजा कवियों तथा शास्त्रकारों को यथोचित पुरस्कार प्रदान करते थे । इन गोष्ठियों में देश-विदेश के विद्वान् सम्मिलित होते थे। उनका परस्पर परिचय तथा विचार विनिमय होता था। पुरस्कृत विद्वानों तथा कवियों को ब्रह्मपट्ट दिये जाते थे, तथा उन्हें ब्रह्मरथ पर बैठाकर समारोह सहित नगर यात्रा कराई जाती थी। सर्वोत्कृष्ठ विद्वानों तथा कवियों का इस प्रकार का सार्वजनिक सम्मान राजा तथा कविसमाज दोनों के यश की श्रीवृद्धि करता था। रचनाओं तथा रचनाकारों के मूल्याङ्कन के इन अवसरों पर केवल कवि तथा शास्त्रकार ही नहीं, बल्कि प्रजा के विभिन्न श्रेणी के लोग भी श्रोता और दर्शक के रूप में उपस्थित होकर विद्वानों के सार्वजनिक सम्मान के साक्षी बनते थे । काव्यगोष्ठी के समान विज्ञानगोष्ठी का
1. महानगरेषु च काव्यशास्त्रपरीक्षार्थम् ब्रह्मसभाः कारयेत्। तत्र परीक्षोत्तीर्णानाम् ब्रह्मरधयामं पट्टबन्धश्च।
(काव्यमीमांसा दशम अध्याय) 2 श्रूयते चोज्जयिन्यां काव्यकारपरीक्षा- "इह कालिदासमेण्ठावत्रामररूप सूर भारवयः हरिचन्द्रचन्द्रगुप्तौ परीक्षिताविह विशालायाम् ॥" श्रूयते च पाटलिपुत्रे शास्त्रकारपरीक्षा
अत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्यादि
वररुचिपतञ्जली इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः
(काव्यमीमांसा दशम अय)
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