Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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तात्पर्य है कवि में काव्य निर्माण सम्बन्धी गुण होना शब्दहरण की स्थिति में ऐसे कवित्व की उपस्थिति के स्थल राजशेखर की दृष्टि में गिने चुने ही है। कवि तथा व्यापारी कहीं न कहीं से कुछ ग्रहण करते हैं, किन्तु इस बात को छिपाने वाले प्रसन्न रहते हैं।1 पद्म के तीन पादों का हरण राजशेखर को उसी स्थल पर स्वीकार है जहाँ हरण किए गए तीनों पाद किसी एक ही रचना से न ग्रहण करके भिन्न भिन्न रचनाओं से तथा भिन्न-भिन्न स्थानों से ग्रहण किए गए हों । भिन्न-भिन्न श्लोकों के भिन्नार्थक पादों को लेकर उन्हें स्वरचित एक पाद से मिलाकर एक विशेष अर्थ प्रकट करने वाला श्लोक बनाना कवि की प्रतिभा की उद्भावना होने से कवित्व का स्थल है और इसी कारण हरण होने पर भी हरण या स्वीकरण नहीं, किन्तु कवित्व मात्र है।
यदि कवि द्वारा किए गए कुछ पदों का ही प्रयोग किसी पूर्व कवि के श्लोकार्थ को परिवर्तित करके कुछ विशेष अर्थ निकालने में सफल हो जाए तो वह भी कवि की प्रतिभा के चमत्कार का प्रदर्शक होने से कवि का कवित्व ही कहा जा सकता है।
किसी रचना के किसी पद के केवल एक भाग में परिवर्तन करके भी पूर्व रचना के अर्थ से भिन्न कोई विशेष अर्थ निकाल सकना पश्चात् कवि का कवित्व ही है, क्योंकि किसी पद के केवल एक भाग में परिवर्तन से रचना के अर्थ को ही कुछ परिवर्तित कर देना कवि की विशेष बुद्धिमत्ता का परिचायक है । पद के एक देश में परिवर्तन को आचार्य ने हरण तथा स्वीकरण दोनों से भिन्न कहा है। इन दोनों से भिन्न शब्दहरण का तृतीय रूप उनकी दृष्टि में कवित्व है। अतः पद के एकदेश का हरण भी सम्भवत: उनकी दृष्टि में कवित्व ही है भोजराज भी पद की प्रकृति तथा विभक्ति के परिवर्तन रूप में पदैकदेश ग्रहण को स्वीकार करते हैं।
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"नास्त्यचौर कविजनो नास्त्यचीरो वणिग्जनः ।
स नन्दति विना वाच्यं यो जानाति निहितम् ॥ "
'शब्दार्थोक्तिषु यः पश्येदिह किशन नूतनम्।
उल्लिखेत्किञ्चन प्राच्यं मान्यतां स महाकविः ॥"
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काव्यमीमांसा (एकादश अध्याय)