Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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भी सिद्ध करता है। यदि वचन तथा उक्ति विचित्र हैं तो उनके द्वारा प्रतिपादित वाच्य का भी वैचित्र्ययुक्त होना सिद्ध होता है तथा वाच्य में वैचित्र्य होना उसकी नवीनता तथा मौलिकता को सिद्ध
करता है।
कवि के काव्य की मौलिकता का प्रधान करण कवि की प्रतिभा ही है। प्रत्येक कवि जो वस्तुत: कवित्वशक्ति से युक्त है, मौलिक अर्थ का ही वर्णन करता है। प्रतिभा सम्पन्न कवि के लिए अर्थो की कोई सीमा नहीं होती। सभी विषयों पर पहले काव्यरचना हो चुकी हो फिर भी उसको नवीन विषय मिल ही जाते हैं। आचार्य आनन्दवर्धन के अनुसार प्रतिभा से प्रतिस्फुरित ध्वनि रूप अलौकिक अपूर्व अर्थ का महाकवियों से ही सम्बन्ध है। यदि काव्यों की अनन्तता सभी अर्थों के समाप्त हो जाने का सङ्केत करे तो भी वे सभी अर्थ प्रतिभा द्वारा उद्भावित ध्वनि के रूप में परिवर्तित होकर असंख्य तथा नवीन हो जाते हैं। मूल वस्तु की एकता होने पर भी पूर्ववर्णित अर्थ परवर्ती रचना में ध्वनिरूप की भिन्नता के कारण पूर्व नहीं, किन्तु नवीन ही अर्थ के रूप में प्रतीत होते हैं।
___ प्रतिभा के द्वारा पूर्व अर्थो का भी नवीन रूप में उन्मेष सम्भव है, किन्तु प्रतिभा के न होने पर नवीन अर्थों की उद्भावना नहीं हो सकती। जब बाल्मीकि, व्यास जैसे पूर्व कवि हो चुके हैं तो किसी भी अर्थ का काव्यार्थ बनने से शेष रह जाना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में जिन कवियों में प्रतिभा है वे तो पूर्ववस्तु को भी ध्वनि भेदों के स्पर्श से चमत्कारयुक्त अपूर्व वस्तु के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। किन्तु जो प्रतिभागुण से हीन होने पर भी कवि बनने का प्रयत्न करते हैं वे पूर्व अर्थों का उसी रूप में वर्णन करते हुए काव्यरचना करते हैं।
बाल्मीकि आदि पूर्व कवियों द्वारा सभी अर्थों के वर्णित किए जाने पर भी प्रतिभागुण केवल उन्हीं आदि पूर्व कवियों तक ही सीमित नहीं हो गया है। अन्य कवि भी प्रतिभा सम्पन्न होते हैं और अपने इसी गुण से प्राचीन अर्थो को नवीन बना लेते हैं।
आचार्य कुन्तक का सुकुमार मार्ग नवशब्दार्थ से मनोहारी है-1 किन्तु इसके अतिरिक्त उनका विचित्र मार्ग भी है जिसके अनुसार महाकवि की प्रतिभा के प्रभाव से अनूतनोल्लेख का भी मनोहारी
1. अम्लानप्रतिभोद्भिन्ननवशब्दार्थबन्धुरः अयनविहितस्वल्पमनोहारिविभूषणः। 25 । प्रथम उन्मेष
वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक)