Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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नदी में कमल :
सरोजरजसारुणितम् सरिदुत्तरीयमिव संहतिमत्स तरङ्गरङ्गि कलहंसकुलम् (6-6)
अथ स्फुरन्मीनविधूतपङ्कजा---------वधूः सुरापगा (8-27)
रात्रि में चक्रवाकमिथुन का अलग अलग तटों पर रहना तथा कमल का रात्रिसंकोच :
तीरान्तराणि मिथुनानि रथाङ्गनामनाम् नीत्वा विलोलितसरोजवनश्रियस्ताः।
सरेजिरे सरसरिज्जलधौतहारास्तारावितानतरला इव यामवत्यः।। (8-56)
रात्रि में चक्रवाक युगल अलग-अलग तटों पर हैं तथा सरोजवन की श्री रात्रि में नष्ट हो जाती
हैं
इच्छतां सह वधूभिरभेदं यामिनीविरहिणां विहगानाम् आपुरेव मिथुनानि वियोगं लङ्घयते न खलु कालनियोगः॥ (9-13)
यच्छति प्रतिमुखं दयितायै वाचमन्तिकगतेऽपि शकुन्तौ ।
नीयते स्म नतिमुज्झितहर्षं पङ्कजम् मुखमिवाम्बुरुहिण्या॥ (9-14)
चक्रवाक प्रिया से केवल बोल ही पाता है. समीप नहीं जा पाता। इसी दु:ख को देखकर
कमलिनी नतमुख है। (रात्रि में चक्रवाक का अलग रहना तथा कमल का सङ्कोच)
चक्रवाक का अलग रहना :
आतपे धृतिमता सह वध्वा
यामिनीविरहिणा विहगेन।
सेहिरे न किरणा हिमरश्मेर्दु:खिते
मनसि सर्वमसह्यम् ॥ (9-30)