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________________ [179] नदी में कमल : सरोजरजसारुणितम् सरिदुत्तरीयमिव संहतिमत्स तरङ्गरङ्गि कलहंसकुलम् (6-6) अथ स्फुरन्मीनविधूतपङ्कजा---------वधूः सुरापगा (8-27) रात्रि में चक्रवाकमिथुन का अलग अलग तटों पर रहना तथा कमल का रात्रिसंकोच : तीरान्तराणि मिथुनानि रथाङ्गनामनाम् नीत्वा विलोलितसरोजवनश्रियस्ताः। सरेजिरे सरसरिज्जलधौतहारास्तारावितानतरला इव यामवत्यः।। (8-56) रात्रि में चक्रवाक युगल अलग-अलग तटों पर हैं तथा सरोजवन की श्री रात्रि में नष्ट हो जाती हैं इच्छतां सह वधूभिरभेदं यामिनीविरहिणां विहगानाम् आपुरेव मिथुनानि वियोगं लङ्घयते न खलु कालनियोगः॥ (9-13) यच्छति प्रतिमुखं दयितायै वाचमन्तिकगतेऽपि शकुन्तौ । नीयते स्म नतिमुज्झितहर्षं पङ्कजम् मुखमिवाम्बुरुहिण्या॥ (9-14) चक्रवाक प्रिया से केवल बोल ही पाता है. समीप नहीं जा पाता। इसी दु:ख को देखकर कमलिनी नतमुख है। (रात्रि में चक्रवाक का अलग रहना तथा कमल का सङ्कोच) चक्रवाक का अलग रहना : आतपे धृतिमता सह वध्वा यामिनीविरहिणा विहगेन। सेहिरे न किरणा हिमरश्मेर्दु:खिते मनसि सर्वमसह्यम् ॥ (9-30)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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