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विभिन्न महाकाव्यों में कविसमय का प्रयोग
संस्कृत साहित्य से कविसमय से सम्बद्ध वर्णनों का विशाल भंडार एकत्र किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में कुछ प्रसिद्ध महाकाव्यों के कविसमय सम्बन्धी उल्लेख यहाँ पर प्रस्तुत हैं।
किरातार्जुनीयम् ( महाकवि भारवि)
वर्षा में मयूर के स्वर में सौन्दर्य
मदात्ययादरक्तकण्ठस्य रुते शिखण्डिनः (4-25)
संभवतः वर्षा में मदवृद्धि के कारण प्रसन्न मयूर के स्वर में सौन्दर्य कवियों को प्रतीत हुआ। वस्तुतः मयूर का स्वर असुन्दर ही होता है।
वेगवती नदी में कमल :
स्फुटसरोजवना जवना नदी (5-7)
बसन्त न होने पर भी कोकिल का मदयुक्त स्वर:
सादृश्यं गतमपनिद्रचूतगन्धैरामोदम् मदजलसेकजं दधानः।
एतस्मिन्मदयति कोकिलानकाले लीनालिः सुरकरिणां कपोलकाषः॥ (5-26)
कविगण कोकिल के स्वर का वसन्त में ही वर्णन करते हैं-इसका कारण है बसन्त में अपनी प्रिय वस्तु सहकारमञ्जरी को पाकर कोकिल का मदयुक्त स्वर अधिक सुन्दर होता है। कविगण काव्य में सौन्दर्यातिशय के ही अभिलाषी होते हैं। महाकवि भारवि का प्रस्तुत श्लोक सिद्ध करता है कि प्रिय
सहकारमञ्जरी के कारण ही कोकिल का स्वर प्रसन्न होता है, क्योंकि सहकारमञ्जरी के समान
गन्धयुक्त हाथियों के मदजल की सुगन्ध के कारण कोकिल अकाल में ही (बसन्त के अतिरिक्त समय
में) मदयुक्त है।