Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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मयूर का स्वर वस्तुतः असुन्दर ही होता है, परन्तु संभवतः वर्षा में मदवृद्धि के कारण मयूर के स्वर में सौन्दर्य आ जाता है। वर्षा में मदवृद्धि के कारण मयूर प्रसन्न होकर नृत्य करता है इसी कारण उसका प्रसन्न स्वर उसके सुन्दर नृत्य के कारण मनोहारी लग सकता है।
मदात्ययादरक्तकण्ठस्य रूते शिखण्डिनः किरातार्जुनीयम् (4-25)
इसी कारण अतिशय सौन्दर्यग्राही कविगण उसका केवल वर्षा में ही वर्णन करते हैं । मयूरों के अन्य ऋतुओं के नृत्य तथा शब्द में पूर्ण प्रफुल्लता तथा पूर्णोल्लास न होने के कारण वर्षा ऋतु में होने वाले नृत्य तथा शब्द की अपेक्षा आकर्षण का अभाव अवश्य ही होगा। अतः यह विषय अन्य ऋतुओं में कवियों का वर्णनीय नहीं बना।
मेघों का कृष्ण, पुष्पों का श्वेत तथा माणिक्य का रक्तवर्ण :
कवि प्रायः मेघों का कृष्ण वर्ण में, पुष्पों का श्वेत वर्ण में तथा माणिक्य का रक्त वर्ण में वर्णन करते हैं, यद्यपि मेघ, पुष्प तथा माणिक्य के विभिन्न वर्ण प्राप्त होते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका वर्णन भी किया जाता है। किन्तु कृष्ण वर्ण के मेघों का मेघों की परिचायक वर्षा ऋतु से सम्बन्ध, अधिकांशत: श्वेत वर्ण में पुष्पों के सौन्दर्य की गरिमा, तथा आधिक्य से प्राप्त माणिक्य (मूंगे) का लाल रंग-कवियों को इन वस्तुओं का प्रायः निश्चित वर्णों में ही वर्णन करने को प्रेरित करते हों ऐसी सम्भावना
है ।
कविसमयों के रूप में कवियों ने असत् का निबन्धन, सत् का अनिबन्धन तथा अनेक स्थानों पर होने वाली वस्तुओं का एक स्थान पर नियमन क्यों किया इस विषय में प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रकार के निबन्धनों के स्वरूप के आधार पर उनके निबन्धन के कारण की केवल सम्भावना ही की जा सकती है। इन विपरीत वर्णनों का आधार कवियों की कल्पना ही है या सत्य यह निश्चित करने का कोई आधार नहीं है। वस्तुतः तो सत्य से भिन्न प्रतीत होने वाली इन कल्पनाओं की वर्णनीयता में जो विशिष्ट कारण रहे होंगे वे ज्ञात नहीं हो सके। इन असत्य कल्पनाओं को किसी समय अथवा स्थान के सत्य के रूप में प्रस्तुत करने वाला राजशेखर का कथन कि "विद्वानों ने शास्त्रों के अध्ययन तथा लोक में