Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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है। विषय के अतिरिक्त कवि के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही काव्यभाषा स्वीकार करने की भी अनिवार्यता है। किसी विशिष्ट देश का निवासी होने के आधार पर कवि का उस देश की भाषा में काव्यनिर्माण स्वाभाविक है। कवियों की भाषा पर देश विशेष एवं राज्यविशेष का प्रभाव सम्भवत: आचार्य राजशेखर को परिलक्षित हुआ था क्योंकि इसी संदर्भ में उन्होंने तत्कालीन विभिन्न देशवासी कवियों का अपने देश के अनुसार ही विशिष्ट भाषा में काव्यनिर्माण का उल्लेख किया है।
तत्कालीन गौड़देशीय कवियों की संस्कृत में रुचि, लाटदेश के निवासी कवियों की प्राकृत में
मारवाड, पंजाब के कवियों की अपभ्रंश में तथा मध्यदेश, आवन्तिका, पारियात्र और दशपुर आदि
प्रदेशों के कवियों की भूतभाषा में रुचि 'काव्यमीमांसा' में उल्लिखित है। इसके अतिरिक्त इसी संदर्भ में तत्कालीन मध्य देशवासी कवियों का विभिन्न भाषाओं में ज्ञान एवं रुचि का परिचय भी 'काव्यमीमांसा' से प्राप्त होता है। आचार्य राजशेखर का यह भाषा सम्बन्धी उल्लेख विभिन्न देशों एवं
स्थानों की तत्कालीन काव्य भाषाओं का परिचय देता है।
तत्कालीन समाज में राज्याश्रित कवियों की अधिकता के कारण आचार्य राजशेखर ने कवियों को अपने आश्रयदाता की भी रूचियों का ध्यान रखने का निर्देश दिया है। राज्याश्रित कवि में काव्यभाषा एवं काव्यविषय की दृष्टि से तत्कालीन समाज में आचार्य राजशेखर को किञ्चित् परतन्त्रता अवश्य दृष्टिगत हुई होगी, स्वयं राज्याश्रित कवि होने के कारण ही वे इस प्रकार की परतन्त्रता का किञ्चित् औचित्य भी स्वीकार करते थे। विभिन्न राजाओं के अन्त:पुर की भाषा का वैशिष्ट्य उनकी काव्यमीमांसा में उल्लिखित है। मगध के शिशुनाग राजा के अन्त:पुर की भाषा में ट, ठ, ड, ढ, श ष, ह
और क्ष वर्जित थे। सूरसेन के कुविन्द राजा के अन्तःपुर में भी भाषा के कठिन अक्षरों का प्रयोग वर्जित था। कुन्तल देश के सातवाहन राजा के अन्त:पुर में प्राकृत भाषा के ही प्रयोग का प्रचार था एवं उज्जयिनी
1. गौडाद्याः संस्कृतस्थाः परिचितरुचयः प्राकृते लाटदेश्या: सापभ्रंशप्रयोगा: सकलमरूभुवष्टक्कभादानकाश्च आवन्त्याः
पारियात्राः सह दशपुरजैर्भूतभाषां भजन्ते यो मध्ये मध्यदेशं निवसति स कविः सर्वभाषानिषण्णः
काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय)