Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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प्रसिद्ध अर्थ की भी (चाहे वह पारिभाषिक कविसमय रूप सिद्धान्त हों अथवा अचेतन का चेतन स्वरूप में वर्णन से सम्बद्ध अर्थ)1 महत्ता स्वीकृत है। वे कविप्रौढोक्ति को अर्थशक्त्युत्थ ध्वनि का प्रमुख भेद मानते हैं, लोकेतर जिस अर्थ को कवि अपनी कल्पना में वर्णित करते हैं वह कवि प्रौढोक्ति है। इन कारणों से कविसमय का महत्त्व आचार्य आनन्दवर्धन के सम्मुख अवश्य रहा होगा। इनका ग्रन्थ 'ध्वन्यालोक' कविशिक्षा से सम्बद्ध नहीं था, इसी कारण सम्भवत: उन्होंने कविशिक्षा के विषय 'कविसमय' का विवेचन नहीं किया।
कविसमय का पूर्ण विवेचन, उसके सम्बन्ध में पूर्णतः नवीन तथा मौलिक विचारों का प्रस्तुतीकरण सर्वप्रथम राजशेखर ने ही किया तथा कविसमय की परिभाषा, औचित्य तथा भेदों (भौम, स्वर्य तथा पातालीय) का उल्लेख किया। राजशेखर से पूर्व काव्यों में कविसमय अधिकता से प्राप्त होते थे, किन्तु उनका स्पष्ट विस्तृत विवेचन काव्यशास्त्रीय जगत् में नहीं हुआ था।
आचार्य राजशेखर के पश्चात् आचार्य हेमचन्द्र ने कविसमय का विवेचन किया है किन्तु उनके विचारों में कोई नवीनता तथा मौलिकता नहीं है। राजशेखर का विवेचन उनके ग्रन्थ में उसी रूप में प्रस्तुत है।
आचार्य वाग्भट के अनुसार भी देश, काल, शास्त्रादि के विरुद्ध अर्थ का निबन्धन किसी विशिष्ट कारण के बिना अनौचित्य पूर्ण है। इस विशिष्ट कारण को कवि परम्परा ही कहा जा सकता है2 वाग्भट
1. अयमपरश्चावस्थाभेदप्रकारो यदचेतनानाम् सर्वेषां चेतनं द्वितीयं रूपमभिमानित्वप्रसिद्धं हिमवद्गङ्गादीनाम्
तच्चोचितचेतनविषयस्वरूपयोजनयोपनिबध्यमानमन्यदेव सम्पद्यते। यथा कुमारसम्भव एव पर्वतस्वरूपस्य हिमवतो वर्णनं,पुनः सप्तर्षिप्रियोक्तिषु चेतनतत्स्वरूपापेक्षया प्रदर्शितं तदपूर्वमेव प्रतिभाति। प्रसिद्धश्चायं सत्कवीनां मार्गः।------------ चेतनानां च बाल्याद्यवस्थाभिरन्यत्वम् सत्कवीनाम् प्रसिद्धमेव ।
(पृष्ठ - 477)
ध्वन्यालोक (चतुर्थ उद्योत) 2 अधीत्य शास्त्राण्यभियोगयोगादभ्यासवश्यार्थपदप्रपञ्चः तं तं विदित्वा समयं कवीनां मनः प्रसत्तौ कवितां विदध्यात्।
___वाग्भटालङ्कार (वाग्भट) प्रथम परिच्छेद । 26। देशकालागमावस्थाद्रव्याषु विरोधिनम् वाक्येष्वर्थ न बध्नीयाद्विशिष्टं कारणं बिना । 271
वाग्भटालङ्कार (वाग्भट) द्वितीय परिच्छेद