Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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आधार पर संस्कार सहित काव्यलेखन के ही अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि कवि के कार्य को सरल बनाने के लिए एक सहायक लेखक की आवश्यकता कवि के सभाओं में काव्यपाठ करने के अतिरिक्त समयों में भी स्वीकार की जा सकती है। आचार्य राजशेखर का समय राज्याश्रित कवियों से ही अधिक सम्बद्ध है, वे स्वयं भी राज्याश्रित कवि थे। तत्कालीन समाज में इन राज्याश्रित कवियों को सहायक आदि की सुविधा भी अवश्य रही होगी जो कुछ निश्चित समय के लिए कवि के समीप रहते हों एवं सभाओं आदि में कवि के साथ जाते रहे हों। आचार्य राजशेखर ने कवि की दिनचर्या में काव्यलेखन का एक निश्चित समय निर्धारित कर दिया है। अतः रात्रि आदि में उसके काव्यलेखन का कार्य जो उसके सहायक के अभाव में उसके सम्बन्धी करते हैं इसी तात्पर्य को व्यक्त करता है कि प्रारम्भिक कवियों को अपने काव्यसम्बन्धी कार्यों को पूर्ण व्यवस्थित तथा नियमित बनाने के लिए नियमित दिनचर्या की आवश्यकता है जिसमें काव्य विद्याओं के ज्ञान एवं काव्यनिर्माण के अभ्यास का भी स्थान है किन्तु काव्यविद्याओं के पूर्ण ज्ञाता, पूर्ण अभ्यस्त कवि का किसी भी समय काव्यनिर्माण एवं काव्यलेखन सम्भव है इसी कारण उन्हें काव्य के लेखनकर्ता सहायक की आवश्यकता किसी भी समय हो सकती है। प्रारम्भिक अवस्था के कवि प्रयत्न पूर्वक काव्य निर्माण करते हैं, अत: उनके काव्यनिर्माण एवं काव्यलेखन का निश्चित समय निर्धारित करना सम्भव है, किन्तु काव्य के भावोदय एवं शब्द, अर्थ आदि काव्यसामग्रियों की मानस में उद्भावना हेतु जिन्हें प्रयत्न नहीं करना पड़ता उन पूर्ण कवियों के मानस में जिस समय काव्य का भावोदय हो उसी समय उन्हें काव्यनिर्माण तथा काव्यलेखन की भी आवश्यकता है। काव्य की लेखन सामग्री :
काव्य लेखन हेतु आवश्यक लेखन सामग्रियों का कवि के समीप सदा उपस्थित रहना अनिवार्य है क्योंकि मानसिक काव्यनिर्माण के पश्चात् लेखन सामग्री के अभाव में उसे लिखित रूप न दे सकने के कारण उसके विस्मत हो जाने की भी सम्भावना है। आचार्य राजशेखर ने अपने समय की परिस्थिति के अनुकूल तत्कालीन समाज में प्रचलित लेखन सामग्रियों की कवि के लिए आवश्यकता स्वीकार की है। इन सामग्रियों में बन्द होने वाले पिटक, खड़िया, स्लेट, डिब्बे, कलम-दावात,