Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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वैशिष्ट्य तथा केवल काव्य रचना रूप कार्य से ही सम्बन्ध इन कवियों को सभी कालों में काव्यरचना की
सामर्थ्य प्रदान करता है।
निषण्ण कवियों का काव्यनिर्माण के लिए गुफा आदि में प्रवेश नहीं होता । वे काव्यनिर्माण के
लिए पूर्णत: अपनी इच्छा का आश्रय लेते हैं । अपनी इच्छा की प्रेरणा से किसी भी समय काव्यनिर्माण में प्रवृत्त होने के कारण इस प्रकार के कवियों का भी काव्यरचना का निश्चित काल निर्धारण सम्भव नही है । इच्छा नियंत्रित प्रवृत्ति नहीं है - जिस समय इच्छा जागरूक हो उसी समय काव्यनिर्माण से सम्बन्ध
होने के कारण इन कवियों का सदा ही काव्यनिर्माण काल होता है । इस प्रकार इन कवियों के काव्य
रचनाकाल का वैशिष्ट्य है कवियों की इच्छा का आश्रय।
'दत्तावसर' कवि का नाम ही उसके स्वरूप का स्पष्टीकरण करता है । केवल काव्यनिर्माण से
ही सम्बद्ध कवियों के अतिरिक्त अन्य कार्यकर्ताओं का भी कवित्व सम्भव है 3 काव्य का निर्माण कवि को अपने अन्य कार्यों को पूर्णत: त्याग देने के लिए ही बाध्य नहीं करता – यद्यपि काव्य अपनी रचना के समय कवि की पूर्ण मानसिक एकाग्रता की अपेक्षा रखता है । केवल काव्य निर्माण के लिए एकान्त स्थान को निवास बनाकर अन्य सभी कार्यों से निवृत्त हो जाना सभी के लिए सम्भव नहीं है । फिर भी कवित्व प्रेरणा के काव्य निर्माण के लिए प्रेरित करने पर अन्य कार्यों में संलग्न व्यक्ति भी अवसर प्राप्त होने पर काव्य निर्माण में प्रवृत्त होते हैं - काव्य निर्माण के लिए विषयों से निवृत्त एकाग्रचित्त की महती आवश्यकता है । काव्यनिर्माण के अतिरिक्त अन्य कार्यों में भी संलग्न रहने वाले कवि की न तो सदा
1 यो गुहागर्भभूमिगृहादिप्रवेशान्नैष्ठिकवृत्तिः कवते, असावसूर्यम्पश्यस्तस्य सर्वे काला:
(काव्यमीमांसा - दशम अध्याय ) 2. यः काव्यक्रियायामभिनिविष्ट : कवते न च नैष्ठिकवृत्तिः स निषण्णस्तस्यापि त एव कालाः । 3 यः सेवादिकमविरून्धानः कवते, स दत्तावसरस्तस्य कतिपये कालाः । निशायास्तुरीयो यामार्द्धः स हि सारस्वतो
मुहूर्तः । भोजनान्तः सौहित्यं हि स्वास्थ्यमुपस्थापयति , व्यवायोपरमः यदार्तिविनिवृत्तिरेकमेकाग्रतायतनं पाण्यानयात्रा विषयान्तरधिनिबत्तम हि चित्तं यत्र यत्र प्रणिधीयते तत्र तत्र गहरीलागम लगति । यदा गदा चात्मनः क्षणिकां मन्यते स स काव्यकरणकाल:
(काव्यमीमांसा - दशम अध्याय)