Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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गम्भीर अध्ययन के परिणामस्वरूप तथा स्वयं कवि होने के कारण अपने ही परिवेश के आधार पर आचार्य राजशेखर ने विभिन्न नवीन विषयों को अपने ग्रन्थ में प्रस्तुत किया होगा । कवियों के काव्यरचना काल के आधार पर उनका विभाग भी काव्यशास्त्र के इतिहास में नवीन विषय है ।
बुद्धिमान् तथा आहार्य बुद्धि शिष्यों के कवि रूप का काव्यरचना काल की दृष्टि से आचार्य राजशेखर ने भिन्न भिन्न रूप प्रस्तुत किया है। यह प्रस्तुतीकरण कवियों द्वारा काव्यरचना के लिए प्रयुक्त अवसरों से सम्बद्ध है। कवियों का केवल काव्यरचना के ही कार्य में संलग्न हो जाना तथा केवल इसी कार्य तक अपने को सीमित रखना आवश्यक नही है। अन्य विभिन्न कार्यों में भी संलग्नता के आधार पर उनके द्वारा काव्य रचना के लिए प्रयुक्त अवसरों में विविधता हो सकती है। काव्यरचना के लिए प्रतिभा आदि हेतुओं के होने पर भी मानसिक एकाग्रता की महती आवश्यकता है इस मानसिक एकाग्रता का सभी समय सभी कवियों को उपलब्ध होना आवश्यक नहीं है । काव्यरचना के लिए प्राप्त अवसरों की विविधता के आधार पर केवल काव्यरचना में ही संलग्न एकान्त प्रिय असूर्यम्पश्य कवि, केवल अपनी इच्छा के आधार पर काव्य रचना करने वाले निषण्ण कवि, काव्यरचना में विशेष रूचि के कारण अपने अन्य कार्यों से अवशिष्ट समय में काव्यकर्ता दत्तावसर कवि तथा विशिष्ट अवसरों की उपस्थिति पर ही काव्यचना करने वाले प्रायोजनिक कवि इस प्रकार का विभाग आचार्य राजशेखर ने अपने ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है।
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कवियों का असूर्यम्पश्य रूप विशिष्ट अभिधान उनकी एकान्त प्रियता का सूचक है । यह एकान्तप्रिय, केवल काव्यरचना रूप उद्देश्य से ही सम्बद्ध कवि पूर्णतम एकान्त की इच्छा से गुफाओं अथवा भूमिगृहादि में प्रवेश करते हैं। एकान्तस्थान में सदा निवास उन्हें सदैव मानसिक एकाग्रता भी प्रदान करता है जो काव्यरचना के लिए आवश्यक तत्व है। सदा चित्त की स्थिरता एवम् एकाग्रता रूप