Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
View full book text
________________
[119]
अग्निपुराण में मृद्वीकापाक को श्रेष्ठ माना गया है। पण्डितराज जगन्नाथ की दृष्टि में भी मृद्वीकापाक ही श्रेष्ठ है जिसकी रचना उनके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं कर सकता 2
आचार्य महिमभट्ट के व्यक्तिविवेक में दो अन्य पार्कोंों का उल्लेख मिलता है वे हैं इक्षुपाक तथा जम्बूपाक । इन्होंने इक्षु तथा जम्बूफल के स्वाद वाली काव्यरचना करने वाले भर्तृमेण्ठ आदि कवियों को श्रेष्ठ माना है 3
इस प्रकार काव्यशास्त्रीय जगत् में आचार्य राजशेखर की काव्यमीमांसा में विभिन्न पाकों के विवेचन के अतिरिक्त अन्यत्र तीन ही पाक विवेचित हैं मृद्वीका, नालिकेर तथा सहकार जिन्हें आचार्य राजशेखर ने कवि के लिए सर्वथा ग्राह्य माना है। आचार्य राजशेखर के ग्रन्थ का अभ्यासी कवि से ही सम्बन्ध है इसी कारण उसमें सर्वथा ग्राह्य पार्कोंों के अतिरिक्त संस्कार्य तथा त्याज्य पाकों का भी विवेचन है जिससे अभ्यासी कवि हेय तथा उपादेय पाकों को पृथक कर हेय पाकों से अपने को बचा सके तथा अपनी रचना को उपादेय पाकों से सम्बद्ध कर सके । जम्बूपाक तथा इक्षुपाक केवल महिमभट्ट द्वारा उल्लिखित है।
अन्य कवि शिक्षाएँ
कवियों का काव्य रचना कालः - काव्यशास्त्रीय जगत् में कवि से सम्बद्ध विभिन्न नवीन विषयों का समावेश सर्वप्रथम आचार्य राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' से मिलता है- क्योंकि यह ग्रन्थ कवियों के स्वरूप के परिपूर्ण विवेचन से सम्बद्ध है। निश्चय ही समसामयिक कवियों के आचरणों के
1. आदावन्ते च सौरस्यं मृद्वीकापाक एव सः । 24।
2
दशम अध्याय (अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग) मृद्वीकामध्यनिर्वन्मसृणरसझरीमाधुरीभाग्यभाजाम्, वाचामाचार्यतायाः पदमनुभवितुं कोऽस्ति धन्यो
मदन्य ॥ रसगङ्गाधर (पण्डितराज जगन्नाथ) पृष्ठ 294
-
3. पुण्ड्रेक्षी परिपाकपाण्डुनिविडे यो मध्यमे पर्वणि ख्यातः किञ्च रसः कषायमधुरो यो राजजम्बूफलं । तस्यास्वाददशाविलुण्ठनपटुर्येषां वचो विभ्रमः सर्वत्रैव जयन्ति चित्रमतयस्ते भर्तृमेण्ठादयः ॥
व्यक्तिविवेक (महिमभट्ट) द्वितीय विमर्श
-
पृष्ठ 214
सम्यगभ्यस्यतः काव्यं नवधा परिपच्यते हानोपादानसूत्रेण विभजेतद्धि बुद्धिमान् ॥ अयमत्रैव शिष्याणां दर्शितस्त्रिविधा विधिः, किन्तु विविधमप्येतत्त्रिजगत्यस्य वर्तते ॥
(काव्यमीमांसा - पञ्चम अध्याय)