Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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सकने के कारण ब्रह्मा ने अप्सराओं की उत्पत्ति की। नीलकण्ठ शङ्कर के नृत्य में इस वृत्ति का प्रथम
दर्शन हुआ।1 अधिक संख्या में उपस्थित नर्तकियों के सुन्दर केश विन्यास के कारण, क्रथकैशिक प्रदेश
अथवा कैशिक जाति का नाट्यप्रयोग होने के कारण इसका कैशिकी' नाम हुआ।
___ काव्यपुरुषाख्यान में वर्णित यह वृत्ति दक्षिण देश की है। दक्षिण देश में काव्यपुरुष के आकर्षण हेतु साहित्यविद्यावधू द्वारा प्रस्तुत नृत्य, गान, वाद्य आदि विलास क्रियाएँ ही कैशिकी वृत्ति हैं। इस आख्यान से भी इस वृत्ति का पूर्णत: कोमल भावनाओं को व्यक्त करने वाले श्रृंगार रस से ही सम्बन्ध स्पष्ट होता है, क्योंकि इन्हीं विलासों के द्वारा काव्यपुरुष का पूर्णतः सरस तथा आकर्षित होना वर्णित है। दक्षिण देश में ही काव्यपुरुष की पूर्ण सरसता के वर्णन से प्रतीत होता है दक्षिण देश की यह वृत्ति आचार्य राजशेखर को सर्वाधिक प्रिय थी।
इसी आख्यान में अवन्तिदेश में साहित्यविद्यावधू द्वारा प्रस्तुत नृत्य, गान आदि पाञ्चाल देश तथा दक्षिण देश के मध्यस्वरूप वाला था, अतः यहाँ की वृत्ति सात्वती तथा कैशिकी दोनों स्वीकार की गई
है।
आचार्य भोजराज ने इन चार वृत्तियों के अतिरिक्त मध्यमारभटी तथा मध्यमकैशिकी वृत्तियाँ भी स्वीकार की, किन्तु इनमें आरभटी और कैशिकी का केवल मिश्रण ही है, नवीन वैशिष्ट्य नहीं है।
आचार्य राजशेखर की काव्यमीमांसा में वर्णित भारती वृत्ति का गौडी रीति से, सात्वती और
आरभटी का पाञ्चाली रीति से तथा कैशिकी का वैदर्भी रीति से सम्बन्ध दृश्यकाव्य में नायकादि के व्यवहार के अनुरूप ही पद विन्यास के औचित्य का सूचक है। भारती वृत्ति का रुक्ष काव्यपुरुष एवम् उदासीन साहित्यविद्या से, सात्वती का किञ्चित् आकर्षित काव्यपुरुष से एवम् कैशिकी वृत्ति का
दृष्टा मया भगवतो नीलकण्ठस्य नृत्यतः कैशिकी श्लक्ष्णनैपथ्या शृंगाररससम्भवा । 451 अशक्या पुरुषैः सा तु प्रयोक्तुं स्त्रीजनादृते ततोऽसृजन्महातट्टजा मनसाऽप्सरसो विभुः । 461
(नाट्यशास्त्र - प्रथम अध्याय)