Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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गजशेखर केवल शक्ति को ही काव्य का परम कारण स्वीकार करते हैं। प्रतिभा उनकी दृष्टि में काव्यनिर्माण की परम सहायक सामग्री है। जब तक शब्दों, अर्थों, उक्तियों आदि का हृदय में प्रतिभास न हो कवि काव्यनिर्माण कर ही नहीं सकता। किन्तु काव्य की इस परम सहायक सामग्री रूपी प्रतिभा के भी 'हेतु' रूप में आचार्य राजशेखर 'शक्ति' का उल्लेख करते हैं। 'काव्यमीमांसा' में शक्ति का स्वरूप स्पष्ट न होने के कारण अनेक विसंगतियों के उपस्थित होने पर भी शक्ति को काव्यशास्त्र के विभिन्न आचार्यों से सहमति व्यक्त करते हुए पूर्ववासना रूप, कवित्व का बीजभूत संस्कार विशेष स्वीकार करना ही उचित होगा। कवि के जन्म के साथ ही कवि-समवेत होना इस कवित्वबीज रूप पूर्ववासना का वैशिष्ट्य है। समाधि एवम् अभ्यास द्वारा उद्भासित यह शक्ति काव्योपयोगी शब्द, अर्थ, उक्ति, अलङ्कार आदि सामग्रियों को हृदय में प्रतिभासित करने वाली सामर्थ्य बन जाती है-जिसे प्रतिभा कहते हैं। इस प्रकार बीज की अविचलित स्थिति एवम् उसका उद्भेद होकर अंकुर निकलना एक ही बीज की जिस प्रकार दो स्थितियाँ हैं, उसी प्रकार शक्ति एवम् प्रतिभा को भी एक ही सामर्थ्य की दो विभिन्न स्थितियों के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। जिस व्यक्ति में कवित्व का बीजभूत संस्कार है, उसके हृदय में ही काव्योचित सामग्रियों का प्रतिभास होता है-यही नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा अर्थात् प्रतिभा है। इस प्रकार की स्थिति स्वीकार की जाए तो आचार्य राजशेखर के दोनों विचारों-'केवल शक्ति ही काव्य का परम कारण है' तथा 'प्रतिभा काव्यनिर्माण की परम सहायक सामग्री है'-में परस्पर विरोध उत्पन्न
नहीं होगा। आचार्य राजशेखर ने स्वीकार किया है कि शक्ति और प्रतिभा में कारण कार्यभाव है। कर्तत्व
रूप शक्ति का कर्मरूप है प्रतिभा तथा व्युत्पति। प्रज्ञा तथा प्रतिभा एक ही अर्थ में प्रयुक्त होती हैं, किन्तु आचार्य राजशेखर तीनों कालों की तीन प्रकार की बुद्धि स्वीकार करते हैं-स्मृति, मति, प्रज्ञा । कवि से सम्बद्ध कारयित्री प्रतिभा के आचार्य राजशेखर ने तीन भेद 'काव्यमीमांसा' में प्रस्तुत किए हैं-सहजा
1. 'प्रतिभैव परिकरः' इति यायावरीयः
काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय) 2. 'शक्तिकर्तृके हि प्रतिभाव्युत्पत्तिकर्मणी
चतुर्थ अध्याय
काव्यमीमांसा - (राजशेखर) 3 त्रिधा च सा स्मृतिर्मतिः प्रज्ञेति अतिक्रान्तस्यार्थस्य स्मी स्मृतिः। वर्तमानस्य मन्त्री मतिः। अनागतस्य प्रज्ञात्री प्रज्ञेति। सा त्रिप्रकाराऽपि कवीनामुपकी।
चतुर्थ अध्याय काव्यमीमांसा - (राजशेखर)