Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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प्रतिभा, आहार्या प्रतिभा तथा औपदेशिकी प्रतिभा आचार्य राजशेखर द्वारा किया गया विशिष्ट वर्गीकरण
प्रतिभा के कारणों की व्यापकता को प्रदर्शित करता है।
सहजा प्रतिभा का कारण - पूर्वजन्म का संस्कार ।
आहार्या प्रतिभा का कारण - इस जन्म के व्युत्पत्ति और अभ्यास ।
औपदेशिकी प्रतिभा का कारण - मन्त्र तन्त्र, देवता, महापुरुषादि के वरदान अथवा उपदेश ।
पूर्वजन्म का संस्कार होने पर भी ऐहिक संस्कार की आवश्यकता को आचार्य राजशेखर ने प्रबलता से स्वीकार किया है। सहजा प्रतिभा के लिए इस जन्म का अत्यल्प संस्कार तथा आहार्या प्रतिभा के लिए अत्यधिक संस्कार अपेक्षित है औपदेशिकी प्रतिभा के लिए उपदेश, वरदान आदि पर्याप्त हैं। प्रतिभा से सम्बद्ध कवि भेद :
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तीन प्रकार की कारयित्री प्रतिभाओं से सम्बद्ध तीन प्रकार के कवि भी 'काव्यमीमांसा' में उपस्थित हैं 2
सारस्वत कवि - स्वाभाविक बुद्धिमान् प्रखरबुद्धि कवि को जन्म से सहजा प्रतिभा प्राप्त होती है । ऐहिक अल्प संस्कार से उबुद्ध प्रतिभा वाला वह व्यक्ति श्रेष्ठ कवि बन सकता है। सहृदयों के हृदयहरण की क्षमता विशेष रूप से सहजा प्रतिभासम्पन्न कवियों में ही होती है। श्रेष्ठ काव्य का कारण नैसर्गिकी अथवा सहजा प्रतिभा दुर्लभ है। सभी कवि नैसर्गिकीप्रतिभासम्पन्न नहीं होते ।
आभ्यासिक कवि - इस जन्म के अत्यधिक संस्कार से आहार्या प्रतिभा की उत्पत्ति होती है । इस जन्म के संस्कार निश्चय ही व्युत्पत्ति तथा अभ्यास रूप हैं। काव्यजगत् में सामान्य कवित्व आहार्या
1.
सा च त्रिधा कारयित्री भावयित्री च कवेरूपकुर्वाणा कारयित्री साऽपि त्रिविधा सहजाऽऽहार्योपदेशिकी च जन्मान्तरसंस्कारापेक्षिणी सहजा जन्मसंस्कारयोनिराहार्या मन्त्रतन्त्राद्युपदेशप्रभवा औपदेशिकी ऐहिकेन कियतापि संस्कारेण प्रथमां तां सहजेति व्यपदिशन्ति । महता पुनराहार्या। औपदेशिक्याः पुनरैहिक एव उपदेशकालः, ऐहिक एव संस्कारकालः । (चतुर्थ अध्याय) काव्यमीमांसा (राजशेखर)
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त इमे त्रयोऽपि कवयः सारस्वतः, आभ्यासिकः, औपदेशिकश्च । जन्मान्तरसंस्कारप्रवृत्तसरस्वतीको बुद्धिमान्सारस्वतः । इह जन्माभ्यासोद्भासितभारतीक आहार्यबुद्धिराभ्यासिकः उपदेशदर्शितवाग्विभवो दुर्बुद्धिरौपदेशिकः ।
काव्यमीमांसा - (चतुर्थ अध्याय)