Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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(1) उचित संयोग पदार्थो के उपमानोपमेय भाव सम्बन्ध उचित प्रतीत होने पर ।
(2) योक्तृसंयोग एक से क्रमश: दूसरे अर्थ का संयोग होते जाना अर्थात् उत्तरोत्तर सम्बन्धकारी
संयोग ।
(3) उत्पाद्यसंयोग - उपमान उममेय का सम्बन्ध संभावित होने पर ।
(4) संयोग विकार - संयोग से विकार उत्पन्न होना ।
।
इन चार नवीन काव्यार्थ स्त्रोतों पर कवि प्रतिभा का ही प्रभाव दिखाई देता है, प्रतिभासम्पन्न तथा व्युत्पन्न कवि इस प्रकार के असंख्य काव्यार्थ प्रस्तुत कर सकता है, अतः इन चार नवीन भेदों में कोई विशेष मौलिकता का तत्व नहीं दिखता। काव्यमीमांसा में प्रस्तुत सभी काव्यार्थस्त्रोतों के सात अवान्तर भेद - दिव्य, दिव्यमानुष, मानुष, पातालीय, मर्त्यपातालीय, दिव्यपातालीय तथा दिव्यमर्त्यपातालीय हैं। काव्य के पात्रों तथा वस्तुओं से सम्बद्ध इन सात अर्थों का स्वरूप उनके नाम से ही स्पष्ट है। अर्थस्त्रोतों के इन अवान्तर भेदों के भी भेद विभेद काव्यमीमांसा में प्रस्तुत
(1) शुद्ध
1.
-
दिव्य आदि सभी अर्थों के सर्वप्रथम दो भेद हैं तथ इन दो भेदों के पुनः पाँच भेद । 1
(1) मुक्तक
(2) प्रबन्ध
(2) चित्र (4) संविधानकभू
(5) आख्यानवान्
(3) कथात्थ
(1) शुद्ध
(2) चित्र (3) कथोत्थ
(4) संविधानकभू (5) आख्यानवान्
'सत्रिधा' इति द्रौहिणि दिव्यो, दिव्यमानुषो, मानुषश्च 'सप्तधा' इति यायावरीयः पातालीयो, मर्त्यपातालीयो, दिव्यपातालीयो, दिव्यमर्त्यपातालीयश्च ।
दिव्यमानुषस्तु चतुर्धा दिव्यस्य मर्त्यागमने मत्र्त्यस्य च स्वर्गगमन इत्येको भेद दिव्यस्य मर्त्यभावे, मत्त्र्त्यस्य व दिव्यभाव इति द्वितीयः । दिव्येतिवृत्तपरिकल्पनया तृतीयः । प्रभावाविर्भूत दिव्यरूपतया चतुर्थः ।
मर्त्यपातालीयः
इहापि पूर्ववत्समस्तमिश्रभेदानुगमः ।
स पुनर्द्विधा । मुक्तकप्रबन्धविषयत्वेन । तावपि प्रत्येकं पञ्चधा । शुद्ध:, चित्र, कथोत्थः, संविधानकभूः, आख्यानकवांश्च । तत्र मुक्तेतिवृत्तः शुद्धः स एव सप्रपञ्चश्चित्रः । वृत्तेतिवृत्त: कथोत्थः । सम्भावितेतिवृत्तः संविधानकभूः। परिकल्पितेतिवृत्तः आख्यानकवान्। (काव्यमीमांसा नवम अध्याय)