Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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असामान्य विचार उपस्थित हुआ है यद्यपि वह तीनों हेतुओं की सम्मिलित अनिवार्यता तो स्वीकार करते हैं, किन्तु यदा कदा प्रतिभा के अभाव में भी व्युत्पत्ति और अभ्यास का महत्व स्वीकार करते हैं।
इस विषय में आचार्य राजशेखर तीनों हेतुओं की समष्टि को स्वीकार तो करते हैं, किन्तु शक्ति और प्रतिभा को काव्यनिर्माण का परम कारण मानते हैं; तथापि उनके ग्रन्थ में व्युत्पत्ति और अभ्यास को जितना महत्व तथा विस्तार प्राप्त हुआ है, उतना उनके पूर्व अन्यत्र नहीं मिलता। शक्ति एवम् प्रतिभा :
निरन्तर प्रयत्न करने पर भी श्रेष्ठ कवित्व सभी के लिए सम्भव नहीं है। विभिन्न आचार्यों ने प्रयत्न से कवि बनने की सम्भावना को स्वीकार तो किया है, किन्तु कवि के काव्य में उसके प्रयास का प्रतिबिम्ब जब दिखाई देता है, तब काव्य सामान्य ही होता है, उत्तम कोटि का नहीं। श्रेष्ट काव्य में-उसके भाव तथा भाषा के अन्तिम स्वरूप में केवल सरसता ही परिलक्षित होनी चाहिए, कवि का
सश्रम प्रयास नहीं।
आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में प्रतिभा को प्रर्याप्त विस्तार प्रदान किया है। प्रतिभा
प्रत्येक स्थिति में काव्य का प्रत्यक्ष स्त्रोत है। कवि प्रतिभा के द्वारा ही काव्य की सृष्टि करता है तथा उन भावों तथा चित्रों की उद्भावना करता है जिन तक सामान्य जन की दृष्टि नहीं पहुँच पाती, साथ ही कवि की प्रतिभा वस्तु को लोकोत्तर सौन्दर्य से मंडित करने में भी सक्षम है। कवि में निहित काव्य की जन्मदात्री सामर्थ्य काव्यशास्त्रीय जगत् में शक्ति एवम् प्रतिभा शब्दों से अभिहित है। प्रतिभा अथवा कवित्वशक्ति नवीन कल्पनाओं, नवीन शब्दों, अर्थों से युक्त श्रेष्ठ मौलिक काव्य की रचना में कवि को समर्थ बनाती है। प्रतिभा से प्रभावित कल्पनाओं में नवीनता का समावेश अवश्य होता है, तथा काव्य के
शब्द और अर्थ नवीन न होने पर भी नवीन से प्रतीत होते हैं। कवि प्रतिभा श्रेष्ठ काव्य के परम तत्व रस
के अनुकूल ही शब्द, अर्थ, उक्ति आदि को कवि के हृदय में प्रतिभासित करती है।
1. नैसर्गिकी च प्रतिभाश्रुतञ्च बहुनिर्मलम् अमन्दश्चाभियोगोऽस्याः कारणं काव्यसम्पदः (103)
न विद्यते यद्यपि पूर्ववासना गुणानुबन्धि प्रतिभाद्भुतम्। श्रुतेन यत्नेन च वागपासिता ध्रुवम् करोत्येव कमप्यनुग्रहम् (104)
प्रथम परिच्छेद काव्यादर्श (दण्डी)