Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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आत्मा स्वीकार किया था। आचार्य राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में 'कान्तासम्मितोपदशेतया' काव्य के इस प्रयोजन का मनोहारी स्वरूप काव्यपुरुष एवम् साहित्यविद्यावधू के रूपक के रूप में परिलक्षित होता है। जिस प्रकार रूक्ष पुरुष को सरस बनाने के लिए रमणी के प्रेम की आवश्यकता है, उसी प्रकार छन्दोबद्ध शब्दमय काव्य को सरस बनाने के लिए साहित्यविद्या रूपी वधू की कल्पना की गई है। काव्यपुरुष एवम् साहित्यविद्यावधू की यह काल्पनिक कथा काव्य की सृष्टि, बाल्यकाल तथा यौवन को प्रदर्शित करती है। काव्यपुरुष क्रमशः साहित्यविद्यावधू की ओर आकृष्ट होता गया और उसी क्रम में उसमें सरसता की भी वृद्धि होती गई। इस प्रकार काव्य में सरसता का कारण साहित्य (शब्दार्थों का यथावत् सहभाव) ही है। यदि काव्य साहित्य से ओत प्रोत है तो उसका स्वरूप भी सरस और आकर्षक है । आचार्य राजशेखर कविशिक्षक आचार्य हैं, इसी कारण वह यह भी स्पष्ट करना चाहते थे कि काव्य अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ऐसा नहीं होता कि उसमें शब्द और अर्थ पूर्णतः एक दूसरे के अनुकूल हों। यह योग्यता काव्य में क्रमशः ही आती है और इस योग्यता के आने पर काव्य पूर्ण विकसित काव्य के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है। शब्द, अर्थ के समुचित सामञ्जस्य से युक्त आचार्य राजशेखर का साहित्य शब्द परिपक्व, सरस, अत: श्रेष्ठ काव्य की अभिव्यञ्जना करता है। सामान्य 'साहित्य' शब्द वाचक शब्द तथा वाच्य अर्थ के संयोग तथा उनके अनिवार्य सम्बन्ध का पर्याय है, किन्तु आचार्य राजशेखर को अपनी काव्यशास्त्रीय कृति में काव्यात्मक साहित्य की ही आकाङ्क्षा है। शब्द और अर्थ केवल परिपक्व काव्य में ही समुचित रूप में साथ रहते हैं-प्रतीकात्मक रूप में यही सिद्ध करने के लिए आचार्य राजशेखर ने साहित्यवधू की ओर पूर्णत: आकर्षित काव्यपुरुष का उससे विवाह का रूपक प्रस्तुत किया है। सम्भवतः वत्सगुल्म नगर के काव्य की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करने के अभिलाषी आचार्य ने उनका विवाह वत्सगुल्म नगर में ही सम्पन्न कराया। काव्य की पुरुष तथा साहित्य की वधू रूप में प्रतीकात्मक कल्पना यह सिद्ध करती है कि साहित्य (शब्दार्थ के यथावत् सहभाव) से पूर्णतः प्रभावित काव्य विकसित, सरस और श्रेष्ठ है तथा पूर्ण परिपक्व कवि के मानस की उपज है।
साधारण शब्दार्थ साहित्य रसानुकूल हो, इसके लिए उनमें वैशिष्ट्य-गुण और अलङ्कार के रूप में निहित होना चाहिए। शब्द और अर्थ के सम्बन्ध में गुण तथा अलङ्कार के रूप में स्थित सौन्दर्य का या