Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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शूरसेन, हस्तिनापुर, काश्मीर, बाहीक, बाह्लीक, बालवेय आदि जनपद थे।। अवन्तिदेश में अवन्ती, वैदिश, सुराष्ट्र, मालव, अर्बुद, भृगुकच्छ आदि जनपद थे। इस स्थान की रीति के विषय में आचार्य राजशेखर मौन हैं, किन्तु यहाँ की वृत्ति तथा प्रवृत्ति को वे पाञ्चाल तथा दक्षिण देश की वृत्ति, प्रवृत्ति की मध्यवर्ती स्वीकार करते हैं, अत: यहाँ की रीति के विषय में भी उनका यही विचार रहा होगा। मलय, मेकल, कुन्तल, केरल, पाल, मञ्जर, महाराष्ट्र, वङ्ग, कलिङ्ग आदि जनपद दक्षिण देश में थे। इस स्थान की वैदर्भी रीति काव्यमीमांसा में उल्लिखित है । एक ही रीति का अनेक स्थानों पर प्रयोग हो सकता
है. किसी एक ही रीति को देश विशेष की सीमा में आबद्ध करना संभव नहीं है। उनका नामकरण देश
विशेप में उनके अधिकता से प्रयोग से सम्बन्ध रखता है। आचार्य वामन के समान आचार्य राजशेखर भी
यही स्वीकार करते प्रतीत होते हैं, क्योंकि उन्होंने विदर्भ देश में वैदर्भी रीति का अधिक प्रयोग होता है, यह स्पष्ट किया है। 'काव्यमीमांसा' से स्पष्ट प्रतीत होता है कि क्षेत्र विशेष की वेषभूषा, रहन-सहन, आचार-विचार का सीधा प्रभाव वहाँ की भाषा शैली पर भी पड़ता है। गौडी रीति पूर्व देश के लोगों के
अव्यवस्थित वेष तथा जटिल व्यक्तित्व से प्रभावित थी, इसी कारण उसमें लम्बे समासों, अनुप्रासों की
बोझिल परम्परा है । वेषभूषा तथा रहन-सहन का जब किञ्चित् शिष्टतापूर्ण तथा सुन्दर समायोजन हुआ,4 तब भाषा भी पाञ्चाली रीति के रूप में छोटे-छोटे समासों तथा अनुप्रासों की योजना से सुन्दर हुई। विदर्भ
देश में तो कामदेव की क्रीडाभूमि वत्सगुल्म नामक नगर की स्थिति है 5 विदर्भ के लोगों की सुन्दर,
व्यवस्थित वेषभूषा तथा सरस शृंगारपूर्ण क्रियाकलापों का प्रभाव वहाँ के वचन विन्यास पर स्पष्ट
ततश्च स पाञ्चालन्प्रत्युच्चचाल यत्र पाञ्चालशूरसेनहस्तिनापुरकाश्मीरवाहीकबाहीकबहवेयादयो जनपदा:-------- --------सा पाञ्चाली रीतिः
___ काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय) 2 'ततश्च स दक्षिणां दिशमाससाद यत्र मलयमेकलकुन्तलकेरलपालमञ्जरमहाराष्ट्रवङ्गकलिङ्गादयो जनपदा:------- ---------- सा वैदर्भी रीतिः।'
काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय) 3 'यदृच्छयाऽपि यादृड्नेपथ्यः स सारस्वतेय आसीत् तद्वेषाश्च पुरुषा बभूवुः। काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय) 4. 'किश्चिदार्द्रितमना यन्नेपथ्यः स सारस्वतेय आसीदिति------------ | काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय) 5. 'तत्रास्ति मनोजन्मनो देवस्य क्रीडावासो विदर्भेषु वत्सगुल्मं नाम नगरम्।' काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय)