Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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इसके बाद माता द्वारा कहा जाता हे पुत्र समस्त प्राणी समूह की बलि ( घात विधान सवा से चला भा रहा है ४२-४३ ) द्वारा और वैदिक प्रभाणों वदनभर यशोधर महाराज
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द्वारा अपने दोनों धोत्र बन्द करके और स करके पर
करते
हुए कहा जाना — 'हे माता! यदि आपके दशरा मेरे ऊपर कुपुत्र संबंधी निन्दाख्यो पूलि न फेंकी जाय तो मेरे द्वारा कुछ कहा जाता है।'
उसे रोककर माता द्वारा नास्तिक दर्शन संबंधी पूर्वपक्ष दिया जाना । तदनन्तर यशोधर महाराक्ष द्वारा अनेक प्रवल अका युतिय से और ज्योतिष शास्त्र के आधार मे नास्तिक दर्शन का निरसन ( खण्डन )
किया जाना...
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यदि आपको बुद्ध स्वप्न का भय है तो कुलदेवता के लिए करके दुष्ट स्वप्न का शमन-विधान करो। कुलदेवता के लिए प्राणियों का और लोकप्रसिद्ध भी है पश्चात् उसके द्वारा मनु के दो उरण ( द्वारा पशुबलि सिद्ध की जाना...
नं०
पुनः यशोधर महाराज द्वारा कहा जाना — "निश्चय से प्राणियों की रक्षा करना क्षत्रिय राजावों का धर्म है, वह धर्म निर्दोष प्राणियों के घात करने से नष्ट हो जाता है। निश्चय से प्राणियों के व्यवहार शास्त्र राजा के अधीन हैं। प्राणियों के तुण्य व पाप के कारण तथा चार वर्णों व चार आश्रमों के आचरण व मर्यादाएं भी राजाधीन प्रवृत्त होती है | चे राजा लोग काम, क्रोध व अज्ञान से जिस प्रकार पुण्य व पाप आरम्भ करते हैं उसी प्रकार प्रजा मी आरम्भ कर देती है। उक्त बात का दृष्टान्तमाला द्वारा समर्थन किया जाना इत्यादि अहिंसा प्रधान राजनीति की त्रिवेणी प्रवाहित की जाना' ५३
तत्पदात्मशोधर महाराज द्वारा अनेक जनेतर शास्त्रों के प्रमाणों से पशुपति गां-मक्षण का निरसन
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किया जाना |
तदनन्तर पांधर महाराज व 'इन्द्राचित परण' नाम के मुनिराज के मध्य हुई प्रश्नोत्तरमाला का निरूपण होना जिससे यशोधर महाराज को महिसाधर्म में रुचि का उदगम होना....
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तत्पश्चात् चन्द्रमति माता द्वारा जैनधर्म पर दोषारोपण किया जाना अर्थात् पुत्र ! दिगम्बरों के धर्म में देवतर्पण, पितृतर्पण व ब्राह्मण तर्पण नहीं है, एवं स्नान व होम की बात भी नहीं है। ये लोग बंद व स्मृति सहित है, ऐसे दिगम्बरों के धर्म में तुम्हारी बुद्धि किस प्रकार प्रवृत्त हो रही है ? जो दिवम्बरमा ऊपर खड़े हुए पशु-मरी आहार करते हैं । जो निर्लज्ज व पांच गुण से होन है ! हे पुत्र दिगम्बरों का पूर्व में (कृतयुग, त्रेता व द्वापर आदि) में नाम भी नहीं है। केवल कलिकाल में ही इनका दर्शन हुआ है। इनके मत में नियम से
मनुष्य ही देव (ईश्वर) हो जाता है।
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सदनवर बांधर महाराज द्वारा दिगम्बर साधुओं के दोषारोपणों का परिहार किया जाना और जैके आप्त का स्वरूप निर्देश करके जनेगर आस का निरसन किया जाना ।
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तत्पपचात् पात् वर्णाधर महाराज द्वारा मांस व वधु के त्याग का निख्गगा करके वैदिक समालोचना की जाना ६६ पुनः याधर महाराज द्वारा वयार्थ शास्त्र का स्वरूप निर्देश करके आत की मोनदा की जाना इसके बाद चन्द्रमति माता द्वारा गुनः पशुबलि से कुल देवता की पूजा का तथा मधु, मद्य व मांसभक्षण का
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एवं ईश्वर भी बहुसंख्यावाना (चोवीस ) है इत्यादि
समर्थन किया जाना...
पुनः वधर महाराज द्वारा उक्त दोषों का परिहार किया जाना । पुनः यशोधर महाराज द्वारा जनधर्म की प्राचीनता सिद्ध को जाना ।
पुनः यावर महाराज द्वारा पशु बलि आदि का निरसन किया जाना..
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