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दिन दक्षिणायन में वृद्धि और उत्तरायण में हानि को प्राप्त होता है, अर्थात् दक्षिणायन में बढ़ता है और उत्तरायण में घटता है। __टीका-इस गाथा में शेष मासों की पौरुषी जानने की विधि का वर्णन किया गया है। यथा-जब सूर्य दक्षिणायन में होता है, तब छ: मास तक दिन की वृद्धि होती है, अर्थात् कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धन इन छः राशियों में जब सूर्य होता है तब दिन बढ़ता है और मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशियों में घटता है, परन्तु इतना विचार इसमें अवश्य है कि मिथुन-आषाढ़ के तेरह अंश से दक्षिणायन और धन के अर्थात् पौष मास के तेरह अंशों से उत्तरायण का आरम्भ होता है।
अब हानि और वृद्धि का प्रमाण बतलाते हैं-सात अहोरात्र में एक अंगुल की वृद्धि होती है। एक पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल प्रमाण दिन बढ़ता है। इसी प्रकार हानि के विषय में भी समझ लेना चाहिए, अर्थात् एक, दो और चार अंगुल की कमी होती है।
इस कथन का संकलित भावार्थ यह हुआ कि आषाढ़ी पूर्णमासी को चौबीस अंगुल प्रमाण छाया के आ जाने पर एक प्रहर होता है और श्रावण कृष्णा सप्तमी को पच्चीस अंगुल की छाया आने पर एक प्रहर होता है तथा श्रावण कृष्णा चौदस को छब्बीस अंगुल प्रमाण पर, श्रावण शुक्ला सप्तमी को सत्ताईस अंगुल और श्रावण शुक्ला चौदस को अट्ठाईस अंगुल प्रमाण छाया के आने पर एक प्रहर दिन आ जाता है। इसी क्रम से भाद्रपद में बत्तीस, आश्विन में छत्तीस, कार्तिक में चालीस, मार्गशीर्ष में चवालीस और पौष में अड़तालीस अंगुल प्रमाण छाया आ जाने पर एक प्रहर या पौरुषी होती है। . ऐसे ही वृद्धि की जगह चार-चार अंगुल प्रमाण छाया को कम करते जाना चाहिए, तब आषाढ़ ‘मास में चौबीस अंगुल प्रमाण छाया के आ जाने से पौरुषी हो जाती है।
गाथा में जो सात अहोरात्र लिखे हैं, वे तब होते हैं जब कि चौदह दिन का पक्ष होता है। जब पन्द्रह दिन का पक्ष होता है तब तो साढ़े सात अहोरात्र का ही प्रमाण जानना चाहिए।
अब यहां पर प्रश्न उपस्थित होता है कि चौदह दिन का पक्ष किस-किस मास में होता है, इसी का उत्तर देते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि
आसाढबहुले पक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य, बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ १५ ॥
आषाढे पक्षबहुले, भाद्रपदे कार्तिके च पौषे च ।
फाल्गुने वैशाखे च, बोद्धव्या अवमरात्रयः ॥ १५ ॥ . पदार्थान्वयः-आसाढ-आषाढ़, बहुले-कृष्ण, पक्खे-पक्ष में, भद्दवए-भाद्रपद में, कत्तिए-कार्तिक में, य-और, पोसे-पौष में, य-तथा, फग्गुण-फाल्गुन, य-और, वइसाहेसु-वैशाख मास में, ओम-न्यून, रत्ताओ-अहोरात्र, बोद्धव्वा-जानना चाहिए।
मूलार्थ-आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख मास के कृष्णपक्ष में एक
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२९] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं